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यो भा॒नुभि॑र्वि॒भावा॑ वि॒भात्य॒ग्निर्दे॒वेभि॑ॠ॒तावाज॑स्रः । आ यो वि॒वाय॑ स॒ख्या सखि॒भ्योऽप॑रिह्वृतो॒ अत्यो॒ न सप्ति॑: ॥

English Transliteration

yo bhānubhir vibhāvā vibhāty agnir devebhir ṛtāvājasraḥ | ā yo vivāya sakhyā sakhibhyo parihvṛto atyo na saptiḥ ||

Pad Path

यः । भा॒नुऽभिः॑ । वि॒भाऽवा॑ । वि॒ऽभाति॑ । अ॒ग्निः । दे॒वेभिः॑ । ऋ॒तऽवा॑ । अज॑स्रः । आ । यः । वि॒वाय॑ । स॒ख्या । सखि॑ऽभ्यः । प॒रि॒ऽह्वृतः॑ । अत्यः॑ । न । सप्तिः॑ ॥ १०.६.२

Rigveda » Mandal:10» Sukta:6» Mantra:2 | Ashtak:7» Adhyay:6» Varga:1» Mantra:2 | Mandal:10» Anuvak:1» Mantra:2


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यः-अग्निः-विभावा) जो परमात्मा विशेष प्रकाशमान (भानुभिः-देवेभिः-विभाति) अपने प्रकाशों द्वारा मुक्त आत्माओं के साथ तथा सूर्य ग्रहों के साथ विशेष प्रकाशमान हो रहा है (ऋतावा- अजस्रः) सत्यनियमवाला और एकरस अविनाशी (यः सखिभ्यः सख्या-आविवाय) जो समान खयानवाले उपासक आत्माओं के लिये समान खयान मित्र भाव से तथा सूर्य ग्रहों के लिये समानस्थान भाव से विशेष प्राप्त होता है (अपरिह्वृतः-न अत्यः सप्तिः) सरलगामी सततगतिशील घोड़े के समान ॥२॥
Connotation: - परमात्मा अपने प्रकाश से मुक्तात्माओं के साथ रहता है, वह सत्यज्ञानवान् एकरस है, उपासक आत्माओं का मित्र है, उन्हें सरलरूप से प्राप्त होता है। ऐसे ही सूर्य भी आकाश में वर्तमान हुआ अपने प्रकाश से ग्रहों के साथ मित्र सा बना रहता है ॥२॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यः-अग्निः-विभावा) यः परमात्मा सूर्यो वा विशिष्टप्रकाशमानः (भानुभिः-देवेभिः-विभाति) स्वप्रकाशैर्विशिष्टं प्रकाशते तथा सूर्योऽन्यान् लोकांश्च प्रकाशयति (ऋतावा) सत्यनियमवान् (अजस्रः) अनुपक्षीणः-अबाध्यः-एकरसः (यः सखिभ्यः सख्या-आविवाय) यः परमात्मा मुमुक्षुजीवात्मभ्यः समानख्यानेन “द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया” [ऋ० १।१६४।२०] उक्तत्वात्, तथा द्युस्थानकेभ्यश्च समानस्थानभावेन विशिष्टं प्राप्नोति (अपरिह्वृतः-न अत्यः सप्तिः) अकुटिलः सरलगतिकः सततगमनशीलोऽश्व इव ॥२॥