Go To Mantra

आ रोद॑सी अपृणा॒दोत मध्यं॒ पञ्च॑ दे॒वाँ ऋ॑तु॒शः स॒प्तस॑प्त । चतु॑स्त्रिंशता पुरु॒धा वि च॑ष्टे॒ सरू॑पेण॒ ज्योति॑षा॒ विव्र॑तेन ॥

English Transliteration

ā rodasī apṛṇād ota madhyam pañca devām̐ ṛtuśaḥ sapta-sapta | catustriṁśatā purudhā vi caṣṭe sarūpeṇa jyotiṣā vivratena ||

Pad Path

आ । रोद॑सी॒ इति॑ । अ॒पृ॒णा॒त् । आ । उ॒त । मध्य॑म् । पञ्च॑ । दे॒वान् । ऋ॒तु॒ऽशः । स॒प्तऽस॑प्त । चतुः॑ऽत्रिंशता । पु॒रु॒धा । वि । च॒ष्टे॒ । सऽरू॑पेण । ज्योति॑षा । विऽव्र॑तेन ॥ १०.५५.३

Rigveda » Mandal:10» Sukta:55» Mantra:3 | Ashtak:8» Adhyay:1» Varga:16» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:4» Mantra:3


Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (रोदसी-आ-अपृणात्) ऐश्वर्यवान् परमात्मा अपनी व्याप्ति से द्युलोक पृथिवीलोक को भलीभाँति पूर्ण करता है-भरता है (मध्यम्-उत-आ) दोनों के मध्य अर्थात् अन्तरिक्ष को भी भलीभाँति भर रहा है (ऋतुशः) ऋतुओं के अनुसार (पञ्च सप्तसप्त देवान्) पाँच ज्ञानेन्द्रिय देवों और सर्पणशील सात प्राणस्थानों को-शरीर में मस्तक आदि प्राणों के केन्द्रों को भलीभाँति पूर्ण करता है (चतुस्त्रिंशता पुरुधा) चौंतीस पदार्थों के गण के साथ उनको बहुधा (विव्रतेन सरूपेण ज्योतिषा विचष्टे) विविध कर्मवाले समानरूप केवल स्वरूप से तेज से विशिष्टरूप से देखता है, प्रकाशित करता है ॥३॥
Connotation: - परमात्मा अपनी व्याप्ति से द्युलोक, अन्तरिक्षलोक, पृथिवीलोकों को पूर्ण कर रहा है-भर रहा है। पाँच ज्ञानेन्द्रियों और सर्पणशील सात प्राणकेन्द्रों को भी अपनी व्याप्ति से उनको अपने व्यवहार में समर्थ बना रहा है तथा अपनी विविध कर्मशक्ति से और ज्ञानज्योति से सबको देखता और प्रकाशित करता है ॥३॥
Reads times

BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (रोदसी-आ-अपृणात्) इन्द्रः ऐश्वर्यवान् परमात्मा द्यावापृथिव्यौ स्वव्याप्त्या समन्तात् पूरयति (मध्यम्-उत-आ) मध्यमन्तरिक्षं च समन्तात् पूरयति (ऋतुशः) ऋतोरनुरूपम् (पञ्च सप्तसप्त देवान्) पञ्चेन्द्रियदेवान् सप्तसृप्तान् सर्पणशीलान् प्राणान् “सप्तेमे लोका येषु चरन्ति प्राणाः” [उपनिषद्] समन्तात् पूरयति (चतुस्त्रिंशता पुरुधा) चतुस्त्रिंशद्युक्तेन गणेन सह तान् पूर्वोक्तान् बहुधा (विव्रतेन सरूपेण ज्योतिषा विचष्टे) विविधकर्मवता समानरूपेण केवलेन स्वरूपेण तेजसा विशिष्टं पश्यति दर्शयति प्रकाशयति ॥३॥