Word-Meaning: - (युवम्) तुम दोनों ओषधिचिकित्सक तथा शल्यचिकित्सक वैद्यो ! या आग्नेय सोम्यपदार्थो ! (च्यवानं सनयं रथं यथा) अपने शरीर से क्षीणता को प्राप्त हुए-जीर्ण शरीरवाले को या स्वरूप से लुप्त मेघों को गिरानेवाले विद्युत् को पुराने रथ के समान (चरथाय पुनः-युवानं तक्षथुः) जीवों के चलने के लिए पुनः कर्म से युक्त करो (तौग्र्यम्-अद्भ्यः परि नि-ऊहथुः) बलवान् राजा के पुत्र, देशान्तर में जानेवाले आवश्यक पदार्थों के लानेवाले वैश्य-वंशज को, जलों अर्थात् नदी समुद्रों से पृथक् पार करो-उतारो, तथा जलोदरादि रोगों से मुक्त करो (तां ता विश्वा सवनेषु प्रवाच्या) तुम ओषधिचिकित्सक और शल्य-चिकित्सक के या आग्नेय सोम्य पदार्थों के वे सब कृत्य सत्सङ्गस्थानों में प्रसिद्ध करने योग्य हैं ॥४॥
Connotation: - राष्ट्र के अन्दर ओषधिचिकित्सक तथा शल्यचिकित्सक वैद्य होने चाहिए, जो जीर्ण शरीरवाले या विकलित अङ्गवाले को फिर से युवा जैसा बना सकें। एवं आग्नेय सोम्य पदार्थों द्वारा जलयान आदि यानविशेष चलाकर या बनवाकर यात्रा के लिए सुविधाओं को जुटावें, विशेषतया व्यापारियों के उपयोगार्थ ॥४॥