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तेभ्यो॑ गो॒धा अ॒यथं॑ कर्षदे॒तद्ये ब्र॒ह्मण॑: प्रति॒पीय॒न्त्यन्नै॑: । सि॒म उ॒क्ष्णो॑ऽवसृ॒ष्टाँ अ॑दन्ति स्व॒यं बला॑नि त॒न्व॑: शृणा॒नाः ॥

English Transliteration

tebhyo godhā ayathaṁ karṣad etad ye brahmaṇaḥ pratipīyanty annaiḥ | sima ukṣṇo vasṛṣṭām̐ adanti svayam balāni tanvaḥ śṛṇānāḥ ||

Pad Path

तेभ्यः॑ । गो॒धाः । अ॒यथ॑म् । क॒र्ष॒त् । ए॒तत् । ये । ब्र॒ह्मणः॑ । प्र॒ति॒ऽपीय॑न्ति । अन्नैः॑ । सि॒मः । उ॒क्ष्णः॑ । अ॒व॒ऽसृ॒ष्टान् । अ॒द॒न्ति॒ । स्व॒यम् । बला॑नि । त॒न्वः॑ । शृ॒णा॒नाः ॥ १०.२८.११

Rigveda » Mandal:10» Sukta:28» Mantra:11 | Ashtak:7» Adhyay:7» Varga:21» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:2» Mantra:11


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (ये ब्रह्मणः-अन्नैः प्रतिपीयन्ति) जो शरीर में रोग या राष्ट्र में उपद्रवकारी, शरीर में प्राण को और राष्ट्र में ब्रह्मास्त्रवेत्ता राज्यमन्त्री को, अन्नदोषों से या अन्नको निमित्त बनाकर पीड़ित करते हैं, तथा (तन्वः-बलानि स्वयं शृणानाः) शरीर के या राष्ट्रकलेवर के बलों को स्वतः नष्ट करते हुए (सिमः-अवसृष्टान्-उक्ष्णः-अदन्ति) सब शरीर में सङ्गत रस रक्त बहानेवाले यकृतादि पिण्डों को राष्ट्र में सम्बद्ध आदेश विभागों को खाते हैं (तेभ्यः) उनको (एतत्-गोधाः-अयथं कर्षत्) शरीर में ये प्रगतिधारिका नाड़ी या राष्ट्र में विद्युत्तन्त्री अनायास शरीर से या राष्ट्र से बाहर निकाल देती है ॥११॥
Connotation: - शरीर में अन्नदोषों से हुए रोग प्राण को हानि पहुँचाते हैं और शरीर के बलों को नष्ट करते हुए रसरक्त-सेचक पिण्डों को भी गला देते हैं, तथा राष्ट्र में अन्न को निमित्त बना-कर उपद्रवकारी राज्यमन्त्री को पीड़ित करते हैं और राष्ट्र के बलों को उद्दण्ड होकर नष्ट करते हुए राष्ट्र के बढ़ानेवाले विभागों को ध्वस्त करते हैं, उनको बिजली की तन्त्री या अस्त्रशक्ति से राष्ट्र से बाहर निकाल देना चाहिये ॥११॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (ये ब्रह्मणः अन्नैः प्रतिपीयन्ति) ये रोगा उपद्रवकारिणो वा ब्रह्मणः-ब्रह्म द्वितीयार्थे षष्ठी व्यत्ययेन, शरीरे प्राणम् “प्राणो वै ब्रह्म” [श० १४।६।१०।२] ब्रह्मास्त्रवेत्तारं राष्ट्रे राज्यमन्त्रिणं वा अन्नदोषैरन्नं निमित्तीकृत्य वा हिंसन्ति “पीयति हिंसाकर्मा” [निघं० ४।२५] तथा (तन्वः बलानि स्वयं शृणानाः) शरीरस्य राष्ट्रकलेवरस्य वा बलानि स्वतः नाशयन्तः (सिमः अवसृष्टान् उक्ष्णः अदन्ति) सर्वान् शरीरे सङ्गतान् रक्तसेचकान् पिण्डान्, राष्ट्रे सम्बद्धान्-आदेशविभागान् भक्षयन्ति (तेभ्यः) तान् “द्वितीयार्थे चतुर्थी व्यत्ययेन” (एतत्-गोधाः-अयथं कर्षत्) एषा प्रगतिधारिका नाडी विद्युत्तन्त्री वा-अनायासेन शरीराद्राष्ट्राद्वा बहिर्निष्कर्षयति निस्सारयति ॥११॥