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यमा॒सा कृ॒पनी॑ळं भा॒साके॑तुं व॒र्धय॑न्ति । भ्राज॑ते॒ श्रेणि॑दन् ॥

English Transliteration

yam āsā kṛpanīḻam bhāsāketuṁ vardhayanti | bhrājate śreṇidan ||

Pad Path

यम् । आ॒साः । कृ॒पऽनी॑ळम् । भा॒साऽके॑तुम् । व॒र्धय॑न्ति । भ्राज॑ते । श्रेणि॑ऽदन् ॥ १०.२०.३

Rigveda » Mandal:10» Sukta:20» Mantra:3 | Ashtak:7» Adhyay:7» Varga:2» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:2» Mantra:3


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यं कृपनीडम्) जिस शक्ति-आगार या दयासदन ( भासा केतुम्) ज्ञानप्रकाशक को (आसा) उपासना से अथवा आश्रय कर (वर्धयन्ति) अपने आत्मा में साक्षात् करते हैं या अपने को बढ़ाते हैं और जो (श्रेणिदन् भ्राजते) परमात्मा या राजा प्राणिगण के लिए भोजन देता हुआ प्रकाशमान होता है ॥३॥
Connotation: - शक्ति का सदन परमात्मा या राजा ज्ञानप्रकाशक होता है, उसकी उपासना या आश्रय से उपासक अपने आत्मा में उसे साक्षात् करते हैं और प्रजाएँ राजा के आश्रय से वृद्धि प्राप्त करती हैं। परमात्मा प्राणिगण को और राजा प्रजाओं को भोजन देता है ॥३॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यं कृपनीडम्) यं खलु शक्त्यागारं यद्वा दयासदनम् “नीडं गृहनाम” [निघ०३।४] (भासाकेतुम्) ज्ञानदीप्त्या ज्ञेयं ज्ञानप्रकाशकं वा (आसा) उपासनया यद्वाऽऽश्रयेण (वर्धयन्ति) स्वात्मनि साक्षात्कुर्वन्ति यद्वा स्वात्मानं वर्धयन्ति, यश्च (श्रेणिदन् भ्राजते) परमात्मा राजा वा श्रेण्यै प्राणिगणाय प्रजागणाय वा भोजनं ददत् तन्मध्ये प्रकाशते ॥३॥