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या रुचो॑ जा॒तवे॑दसो देव॒त्रा ह॑व्य॒वाह॑नीः । ताभि॑र्नो य॒ज्ञमि॑न्वतु ॥

English Transliteration

yā ruco jātavedaso devatrā havyavāhanīḥ | tābhir no yajñam invatu ||

Pad Path

याः । रुचः॑ । जा॒तऽवे॑दसः । दे॒व॒ऽत्रा । ह॒व्य॒ऽवाह॑नीः । ताभिः॑ । नः॒ । य॒ज्ञम् । इ॒न्व॒तु॒ ॥ १०.१८८.३

Rigveda » Mandal:10» Sukta:188» Mantra:3 | Ashtak:8» Adhyay:8» Varga:46» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:12» Mantra:3


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (जातवेदसः) परमात्मा या अग्नि की (देवत्रा) विद्वानों में या वायु आदि में (याः) जो (हव्यवाहनीः-रुचः) ग्रहण करने योग्य आनन्द को प्राप्त करानेवाली ज्ञानदीप्तियों या ग्रहण करने योग्य धन की प्राप्त करानेवाली ज्वालाएँ हैं (ताभिः) उनके द्वारा (नः) हमारे (यज्ञम्) अध्यात्मयज्ञ को या शिल्पयज्ञ को प्राप्त हो ॥३॥
Connotation: - परमात्मा की विद्वानों में आनन्द को पहुँचानेवाली ज्ञानदीप्तियाँ हैं, उनके द्वारा अध्यात्मयज्ञ को प्राप्त होता है और अग्नि की वायु आदि समस्त देवों में ज्वालाएँ हैं, जिनके द्वारा शिल्पयज्ञ को सम्पन्न करता है ॥३॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (जातवेदसः) परमात्मनः अग्नेर्वा (देवत्रा) देवेषु-विद्वत्सु वायुप्रभृतिषु वा “देवमनुष्यपुरुषपुरुमर्त्येभ्यो द्वितीयासप्तम्यो-र्बहुलम्” [अष्टा० ५।४।५६] इति सप्तम्यां त्रा, (याः-हव्यवाहनीः-रुचः) याः खलु तवादेयस्यानन्दस्य प्रापिका ज्ञानदीप्तयः यद्वा देयस्य-धनस्य प्रापिकाः-ज्वालाः (ताभिः-नः-यज्ञम्-इन्वतु) ताभिर्ज्ञानदीप्तभिर्ज्वालाभिर्वा-अस्माकमध्यात्मयज्ञं शिल्पयज्ञं वा प्राप्नोतु “इन्वति गतिकर्मा” [निघ० २।१४] ॥३॥