Word-Meaning: - (प्रतीचीने-अहनि) सामने आनेवाले सुखमय दिन अर्थात् आगामी समय मोक्ष के निमित्त (माम्) मोक्ष चाहनेवाले मुझ संसारी जन को (इष्वाः-पर्णम्-इव आदधुः) बाणचालक बाण के पर्व अर्थात् लोहपत्र का जैसे आधान करते हैं, उसी भाँति परमात्मा मुझे समन्तरूप से अपने अन्दर धारण करे (प्रतीचीं वाचं जग्रभ) अभिमुखीन-तेरे प्रति जानेवाली स्तुति वाणी को तू ग्रहण कर, उससे प्रसन्न हुए तुझको (रश्मयः-अश्वं यथा) घास आदि ओषधि घोड़े को जैसे अपने अनुकूल करती हैं, ऐसे तुझे स्तुति से स्वानुकूल बनाता हूँ ॥१४॥
Connotation: - जीवन के अग्रिम भाग में मोक्षप्राप्ति के निमित्त उपासक अपने को परमात्मा के प्रति सौंप देते हैं स्तुतिवाणी के द्वारा, जैसे बाण के फलक को लक्ष्य पर धरते हैं, ऐसे ही। वह स्तुति परमात्मा के लिए अपनी और अनुकूल बनानेवाली ऐसी ही है, जैसे घोड़े को अनुकूल बनाने के लिए घास होती है ॥१४॥