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प्र वो॑ ग्रावाणः सवि॒ता दे॒वः सु॑वतु॒ धर्म॑णा । धू॒र्षु यु॑ज्यध्वं सुनु॒त ॥

English Transliteration

pra vo grāvāṇaḥ savitā devaḥ suvatu dharmaṇā | dhūrṣu yujyadhvaṁ sunuta ||

Pad Path

प्र । वः॒ । ग्रा॒वा॒णः॒ । स॒वि॒ता । दे॒वः । सु॒व॒तु॒ । धर्म॑णा । धूः॒ऽसु । यु॒ज्य॒ध्व॒म् । सु॒नु॒त ॥ १०.१७५.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:175» Mantra:1 | Ashtak:8» Adhyay:8» Varga:33» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:12» Mantra:1


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BRAHMAMUNI

इस सूक्त में राजा राष्ट्रहितार्थ विद्वानों को यथायोग्य नियुक्त करे, प्रजाहित के लिए स्वयं अधिकारी कर्त्तव्यपरायण रहें, विषय हैं।

Word-Meaning: - (ग्रावाणः) हे विद्वानों ! (वः) तुम्हें (सविता देवः) प्रेरक विजय का इच्छुक राजा (धर्मणा) धारण गुण से (प्र सुवतु) प्रेरित करे (धूर्षु) कार्य धुराओं में धारणीय विभागों में (युज्यध्वम्) नियुक्त होवो-लगो तथा (सुनुत) राष्ट्र को एश्वर्ययुक्त करो ॥१॥
Connotation: - राजा के आदेशानुसार प्रत्येक विषय के या प्रत्येक क्षेत्र के विद्वान् अपने विभागों में ठीक-ठीक लगें और राष्ट्र को ऐश्वर्यशाली बनावें ॥१॥
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BRAHMAMUNI

अत्र सूक्ते राजा राष्ट्रस्याधिकारपदेषु विदुषो यथायोग्यं नियोजयेत प्रजाहिताय स्वयं तथाऽधिकारिणश्च कर्तव्यपरायणाः स्युः।

Word-Meaning: - (ग्रावाणः) हे विद्वांसः ! “विद्वांसो हि ग्रावाणः” [श० ३।९।३।१४] (वः) युष्मान् (सविता देवः-धर्मणा प्रसुवतु) प्रेरको राजा जिगीषुः-धारणगुणेन प्रेरयतु (धूर्षु युज्यध्वं सुनुत) कार्यधूर्षु धारणीयविभागेषु-नियुक्ता भवत तथा राष्ट्रमैश्वर्ययुक्तं कुरुत ॥१॥