Go To Mantra

आ या॑हि॒ वन॑सा स॒ह गाव॑: सचन्त वर्त॒निं यदूध॑भिः ॥

English Transliteration

ā yāhi vanasā saha gāvaḥ sacanta vartaniṁ yad ūdhabhiḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

आ । या॒हि॒ । वन॑सा । स॒ह । गावः॑ । स॒च॒न्त॒ । वर्त॒निम् । यत् । ऊध॑ऽभिः ॥ १०.१७२.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:172» Mantra:1 | Ashtak:8» Adhyay:8» Varga:30» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:12» Mantra:1


Reads times

BRAHMAMUNI

यहाँ घर में दूध देनेवाली गौएँ हों, सन्तानोत्पादनार्थ गृहस्थाश्रम है, दान करना, सास की उत्तम प्रेरणा में वधू चले इत्यादि विषय हैं।

Word-Meaning: - (वनसा सह) हे उषा के समान गृह देवी ! तू वननीय-कमनीय तेज या रूप के साथ (आ याहि) प्राप्त हो (यत्) जब (गावः) घर की गौवें (ऊधभिः) दूध भरे अङ्गों से (वर्तनिम्) वर्तनी-कोठी या बाल्टी जैसे बड़े बर्तन को (सचन्ते) सींचती-भर देती हैं ॥१॥
Connotation: - विवाह के अनन्तर पति नववधू को घर ले जाते हुए घर के दृश्यों को दिखाता है, घर में दूध भरे हुए अङ्गोंवाली गौवें बड़े बर्तन को भर देती हैं। दूध का उपयोग मक्खन निकालना आदि का कृत्य गृहिणी के सुपुर्द कर देना चाहिये ॥१॥
Reads times

BRAHMAMUNI

अत्र गृहस्थस्य गृहे दुग्धदात्र्यो गावः स्युः सन्तानोत्पत्तये गृहस्थाश्रमस्तत्र दानं च कार्यं श्वश्र्वाः सुप्रेरणायां वधू चलेदित्येदमादयो विषयाः सन्ति।

Word-Meaning: - (वनसा सह-आ याहि) हे उषः ! उषोवत् कान्तिमति गृह-देवि ! ‘चतुर्थमन्त्रत उषः’ त्वं कमनीयेन तेजसा रूपेण वा सह “वनति कान्तिकर्मा” [निघ० २।६] प्राप्ता भव (यत्-गावः-ऊधभिः-वर्तनिं सचन्ते) यदा गृहस्य गावो दुग्धपूर्णाङ्गैः-दुग्धं वर्तते यस्मिन् तद् दुग्धस्य वर्तनं पात्रं सिञ्चन्ति “षच सेचने” [भ्वादि०] ॥१॥