त्वं म॒खस्य॒ दोध॑त॒: शिरोऽव॑ त्व॒चो भ॑रः । अग॑च्छः सो॒मिनो॑ गृ॒हम् ॥
English Transliteration
tvam makhasya dodhataḥ śiro va tvaco bharaḥ | agacchaḥ somino gṛham ||
Pad Path
त्वम् । म॒खस्य॑ । दोध॑तः । शिरः॑ । अव॑ । त्व॒चः । भ॒रः॒ । अग॑च्छः । सो॒मिनः॑ । गृ॒हम् ॥ १०.१७१.२
Rigveda » Mandal:10» Sukta:171» Mantra:2
| Ashtak:8» Adhyay:8» Varga:29» Mantra:2
| Mandal:10» Anuvak:12» Mantra:2
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BRAHMAMUNI
Word-Meaning: - (त्वम्) हे ऐश्वर्यवन् परमेश्वर ! तू (मखस्य दोधतः) यज्ञ जैसे श्रेष्ठ कर्म को कम्पित-विचलित-विनष्ट करनेवाले का (त्वचः-शिरः-अव भरः) त्वचा से-शिर से सर को उतार दे (सोमिनः गृहम्-अगच्छः) उपासनारसवाले उपासक के हृदयघर को प्राप्त हो ॥२॥
Connotation: - परमात्मा यज्ञ जैसे श्रेष्ठ कर्म के ध्वंस करनेवाले की मूर्धा को नीचे गिरा देता है और अपने उपासक के हृदयघर को प्राप्त होता है ॥२॥
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BRAHMAMUNI
Word-Meaning: - (त्वम्) हे ऐश्वर्यवन् परमेश्वर ! (मखस्य दोधतः) यज्ञस्य श्रेष्ठकर्मणो यो कम्पयति विचालयति तस्य कम्पयमानस्य (त्वचः-शिरः-अव भरः) त्वक्तः शरीरतः शिरोऽवहरसि पृथक्करोषि (सोमिनः-गृहम्-अगच्छः) उपासनारसवतः-उपासकस्य हृदयगृहं गच्छसि प्राप्नोषि ॥२॥