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अ॒ग्निं हि॑न्वन्तु नो॒ धिय॒: सप्ति॑मा॒शुमि॑वा॒जिषु॑ । तेन॑ जेष्म॒ धनं॑धनम् ॥

English Transliteration

agniṁ hinvantu no dhiyaḥ saptim āśum ivājiṣu | tena jeṣma dhanaṁ-dhanam ||

Pad Path

अ॒ग्निम् । हि॒न्व॒न्तु॒ । नः॒ । धियः॑ । सप्ति॑म् । आ॒शुम्ऽइ॑व । आ॒जिषु॑ । तेन॑ । जे॒ष्म॒ । धन॑म्ऽधनम् ॥ १०.१५६.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:156» Mantra:1 | Ashtak:8» Adhyay:8» Varga:14» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:12» Mantra:1


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BRAHMAMUNI

इस सूक्त में सेना प्रजाजन अपने कर्मों से राजा को प्रेरणा दें, राजा भी शत्रुभूमि और धन को जीतकर रक्षार्थ सेना को सौंप दे, राष्ट्रहित का प्रवचन करनेवाले को भोजन दे आदि विषय हैं।

Word-Meaning: - (नः) हमारे (धियः) कर्म (आजिषु) संग्रामों में (सप्तिम्) सर्पणशील (आशुम्-इव) घोड़े के समान (अग्निम्) अग्रणेता राजा को (हिन्वन्तु) प्रेरित करें (तेन) उस राजा के द्वारा (धनं धनम्) प्रत्येक धन-धनमात्र को (जेष्म) जीतें-प्राप्त करें ॥१॥
Connotation: - सैनिक तथा प्रजाजन राजा को संग्रामों में इस प्रकार अपने कर्मों द्वारा प्रेरित करें-साहस दिलाएँ कि वह शत्रु के प्रत्येक धन पर अधिकार कर सके ॥१॥
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BRAHMAMUNI

अस्मिन् सूक्ते राजानं सेना प्रजाजनाः स्वस्वकर्मभिः शत्रुभिः सह योद्धुं प्रेरयन्तु राजापि शत्रुभूभागान् धनं च विजित्य सेनायै रक्षार्थं समर्पयेत् राष्ट्रहितप्रवक्त्रे भोज्यादिकं समर्पयेत्।

Word-Meaning: - (नः धियः) अस्माकं कर्माणि “धीः-कर्मनाम” [निघ० २।१]  (आजिषु सप्तिम्-आशुम्-इव-अग्निम्) संग्रामेषु सर्पणशील-मश्वमिव खल्वग्निमग्रणेतारं राजानम् (हिन्वन्तु) प्रेरयन्तु (तेन धनं धनं जेष्म) तेन प्रत्येकं धनं धनमात्रं जयेम ॥१॥