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य॒माय॒ मधु॑मत्तमं॒ राज्ञे॑ ह॒व्यं जु॑होतन । इ॒दं नम॒ ऋषि॑भ्यः पूर्व॒जेभ्य॒: पूर्वे॑भ्यः पथि॒कृद्भ्य॑: ॥

English Transliteration

yamāya madhumattamaṁ rājñe havyaṁ juhotana | idaṁ nama ṛṣibhyaḥ pūrvajebhyaḥ pūrvebhyaḥ pathikṛdbhyaḥ ||

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Pad Path

य॒माय॑ । मधु॑मत्ऽतमम् । राज्ञे॑ । ह॒व्यम् । जु॒हो॒त॒न॒ । इ॒दम् । नमः॑ । ऋषि॑ऽभ्यः । पू॒र्व॒ऽजेभ्यः॑ । पूर्वे॑भ्यः । प॒थि॒कृत्ऽभ्यः॑ ॥ १०.१४.१५

Rigveda » Mandal:10» Sukta:14» Mantra:15 | Ashtak:7» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:5 | Mandal:10» Anuvak:1» Mantra:15


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यमाय राज्ञे मधुमत्तमं हव्यं जुहोतन) पूर्वोक्त सर्वत्र राजमान समय को अनुकूल बनाने के लिये मधु या मिष्ट से युक्त हवि का होम करना चाहिये (पथिकृद्भ्यः पूर्वजेभ्यः पूर्वेभ्यः ऋषिभ्य इदं नमः) धर्म-मार्ग सम्पादन करनेवाले पूर्वजों की अपेक्षा भी जो पूर्व ऋषि हो चुके हैं, उनके लिये यह तीन मन्त्रों में कहा हुआ सोम घृत-मधु-सहित हवि का होमरूप कर्म नम्रतारूप या शिष्टाचाररूप हो ॥१५॥
Connotation: - समय को उपयोगी बनाने के लिये मधु या मिष्ट वस्तु से युक्त हवि का होम करना चाहिये। इस प्रकार सोमादि ओषधि का रस घृत और मधु से मिश्रित हवियों का हवन करना आदि उत्तम कर्म पुराने ऋषियों के लिये शिष्टाचार का अनुष्ठान भी समझना चाहिये ॥१५॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यमाय राज्ञे मधुमत्तमं हव्यं जुहोतन) पूर्वोक्ताय सर्वत्र राजमानाय कालाय मधुमत्तमं मधुररसयुक्तं होतव्यं वस्तु जुहुत (पथिकृद्भ्यः पूर्वजेभ्यः पूर्वेभ्यः-ऋषिभ्यः-इदं नमः) धर्ममार्गसम्पादकेभ्यः पूर्वजापेक्षया पूर्वेभ्यः प्राक्तनेभ्यः ऋषिभ्य इदं मन्त्रत्रयोक्तं सोमघृतमधुमिश्रं हविष्प्रदानं नम्रत्वं शिष्टाचारोऽस्तु, अस्तीत्यर्थः ‘आम्राश्च सिक्ताः पितरश्च प्रीणिताः’ इतिवत् ॥१५॥