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य॒माय॑ घृ॒तव॑द्ध॒विर्जु॒होत॒ प्र च॑ तिष्ठत । स नो॑ दे॒वेष्वा य॑मद्दी॒र्घमायु॒: प्र जी॒वसे॑ ॥

English Transliteration

yamāya ghṛtavad dhavir juhota pra ca tiṣṭhata | sa no deveṣv ā yamad dīrgham āyuḥ pra jīvase ||

Pad Path

य॒माय॑ । घृ॒तऽव॑त् । ह॒विः । जु॒होत॑ । प्र । च॒ । ति॒ष्ठ॒त॒ । सः । नः॒ । दे॒वेषु॑ । आ । य॒म॒त् । दी॒र्घम् । आयुः॑ । प्र । जी॒वसे॑ ॥ १०.१४.१४

Rigveda » Mandal:10» Sukta:14» Mantra:14 | Ashtak:7» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:4 | Mandal:10» Anuvak:1» Mantra:14


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यमाय घृतवत्-हविः-जुहोत प्रतिष्ठत च) पूर्वोक्त जीवनकाल और विश्वकाल को अनुकूल बनाने के लिए घृतसहित ओषधिरसरूप हवि आदि का होम करो और जीवन की उच्चता को प्राप्त होओ (सः नः जीवसे देवेषु दीर्घम्-आयुः प्रायमत्) एवं वह काल हमारे अधिक और उत्तम जीवन के लिये हमारी इन्द्रियों में दीर्घजीवन का विस्तार करे ॥१४॥
Connotation: - हव्य वस्तुओं में घृत मिलाकर या घृत के साथ हवन करने से इन्द्रिय-शक्तियाँ चिरस्थायी रहती हैं ॥१४॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (यमाय घृतवत्-हविः-जुहोत प्रतिष्ठत च) यमाय पूर्वोक्ताय जीवनकालाय विश्वकालाय वा तत्सौष्ठ्यसम्पादनायेत्यर्थः। घृतयुक्तं हवनं जुहोत कुरुत प्रतिष्ठत च तत्र प्रकृष्टतां च प्राप्नुत (सः-नः-जीवसे देवेषु दीर्घम् आयुः प्रायमत्) सोऽस्माकं जीवनाय देवेष्विन्द्रियेषु दीर्घस्थायित्वं विस्तारयति ॥१४॥