Word-Meaning: - (दासाय) कर्मों का क्षय करनेवाले मेघ के लिए या दुष्ट शत्रु के लिए (प्रतिमानम्-आर्यः) श्रेष्ठ कार्यविधायक विद्युत् अग्नि या राजा प्रतिकार-प्रहार को (विदत्) प्राप्त करता है-देता है, तब (दिवः-मध्ये) आकाश के मध्य में (सूर्यः-रथम्-वि-अमुचत्) सूर्य अपने रमणमण्डल को स्थापित करता है या ज्ञानसूर्य ज्ञानसदन में ज्ञानप्रवाह को छोड़ता है (पिप्रोः-मायिनः) उदरम्भर-जल से अपने उदर को भरे हुए मेघ के या दूसरे के भोजन से भरे हुए दुष्टजन को (इन्द्रः-ऋजिश्वना) विद्युदग्नि या राजा प्रसिद्ध व्यापनबल से (चकृवान् दृढानि-वि आस्यत्) स्ववश में करता हुआ दृढ़ बलों को विशेषरूप से फेंकता है, उन्हें नि:सत्त्व बनाता है ॥३॥
Connotation: - कर्मोपक्षय करनेवाले मेघ के लिए या दुष्ट शत्रु के लिए प्रगतिशील विद्युदग्नि या श्रेष्ठ राजा प्रतिकारूप में प्रहार किया करता है, तब सूर्य आकाश में अपने प्रकाशमण्डल को प्रकाशित करता है तथा विद्यासूर्य विद्वान् ज्ञान का प्रसार करता है, जल से भरा मेघ जल बरसाता है, दूसरे के भोजन से भरे पेट दुष्ट मनुष्य का पतन होता है, विद्युत् या राजा मेघ या दुष्टजनों के बलों को नि:सत्त्व कर देता है ॥३॥