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वा॒युर॑स्मा॒ उपा॑मन्थत्पि॒नष्टि॑ स्मा कुनन्न॒मा । के॒शी वि॒षस्य॒ पात्रे॑ण॒ यद्रु॒द्रेणापि॑बत्स॒ह ॥

English Transliteration

vāyur asmā upāmanthat pinaṣṭi smā kunannamā | keśī viṣasya pātreṇa yad rudreṇāpibat saha ||

Pad Path

वा॒युर् । अ॒स्मै॒ । उप॑ । अ॒म॒न्थ॒त् । पि॒नष्टि॑ । स्म॒ । कु॒न॒न्न॒मा । के॒शी । वि॒षस्य॑ । पात्रे॑ण । यत् । रु॒द्रेण॑ । अपि॑बत् । स॒ह ॥ १०.१३६.७

Rigveda » Mandal:10» Sukta:136» Mantra:7 | Ashtak:8» Adhyay:7» Varga:24» Mantra:7 | Mandal:10» Anuvak:11» Mantra:7


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (केशी) सूर्य (विषस्य) जल के (पात्रेण) पीने के साधन पात्र से-रश्मिसमूहों से (रुद्रेण-सह) अग्नि से (यत्-अपिबत्) जब पीता है ऊपर ग्रहण करता है, तब (अस्मै) इस सूर्य के लिये (वायुः) वायु (उप अमन्थत्) ऊपर मन्थित करता है, जल को विलोडित करता है (कुनन्नमा) कुत्सित नमानेवाली किसी से भी न नमनेवाली विद्युत्, (पिनष्टि स्म) जल को पीस देती है-अवयवरूप में करती है फिर वर्षा करती है ॥७॥
Connotation: - सूर्य अपनी किरणों से तथा अग्नि ताप से जल को ऊपर खींचता है, वायु उसको विलोडित करता है, घुमाता है तथा विद्युत् अवयवों में छिन्न-भिन्न करता है और बरसा देता है ॥७॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (केशी) सूर्यः (विषस्य) जलस्य-जलम् “विषमुदकनाम” [नि० १।१२] (पात्रेण) पातुं साधनं पात्रं तेन रश्मिसमूहेन, तथा (रुद्रेण सह) अग्निना-सह “अग्निरपि रुद्र उच्यते” [निरु० १०।७] “अथ यत्रैतत् प्रथमं समिददो भवति धूप्यत इव तर्ह्येषः-अग्निर्भवति-रुद्रः” [श० २।३।२।९] (यत्-अपिबत्) यदा पिबति-उपरि गृह्णाति तदा (अस्मै वायुः-उप अमन्थत्) अस्मै सूर्याय वायुरुपामन्थयति-तज्जलं विलोडयति (कुनन्नमा-पिनष्टि स्म) कुत्सिता नमयित्री न केनदचिदपि नामयितुं योग्या विद्युत् ‘कुपूर्वात् नमधातोरचि यङ्लुकि प्रयोगः’, तज्जलं चूर्णयति-अवयवीकरोति पुनर्वर्षति ॥७॥