उत्ति॑ष्ठसि॒ स्वा॑हुतो घृ॒तानि॒ प्रति॑ मोदसे । यत्त्वा॒ स्रुच॑: स॒मस्थि॑रन् ॥
English Transliteration
ut tiṣṭhasi svāhuto ghṛtāni prati modase | yat tvā srucaḥ samasthiran ||
Pad Path
उत् । ति॒ष्ठ॒सि॒ । सुऽआ॑हुतः । घृ॒तानि॑ । प्रति॑ । मो॒द॒से॒ । यत् । त्वा॒ । स्रुचः॑ । स॒म्ऽअस्थि॑रन् ॥ १०.११८.२
Rigveda » Mandal:10» Sukta:118» Mantra:2
| Ashtak:8» Adhyay:6» Varga:24» Mantra:2
| Mandal:10» Anuvak:10» Mantra:2
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BRAHMAMUNI
Word-Meaning: - (सु-आहुतः) हे अग्रणेता परमात्मन् या अग्नि ! सुष्ठु आह्वान को प्राप्त या सुष्ठु होम से आहुत (उत् तिष्ठसि) साक्षात् होता है या उज्ज्वलित होता है (व्रतानि प्रति) देवव्रतों-मुमुक्षुओं के कर्मों को लक्ष्य करके या घृतादि हव्य पदार्थ को लेकर (मोदसे) अन्यों को हर्षित करता है (यत्-त्वा) जब तुझे (स्रुचः) स्तुतिवाणियों या जुहू आदि पात्र (समस्थिरन्) सम्यक् प्राप्त हो जाते-सङ्गत हो जाते हैं ॥२॥
Connotation: - परमात्मा प्रार्थना द्वारा आमन्त्रित किया हुआ साक्षात् होता है, तो मुमुक्षुजनों के कर्मों को लक्ष्य करके उन्हें आनन्दित करता है और उनकी स्तुतियाँ उसमें सङ्गत हो जाती हैं एवं होम द्वारा आधान को प्राप्त हुआ अग्नि उद्दीप्त हो जाता है, तब घृतादि हव्य द्रव्यों को लेकर सुगन्ध से आनन्दित कर देता है, जब कि जुहू आदि पात्र सम्यक् वर्त्तमान होते हैं ॥२॥
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BRAHMAMUNI
Word-Meaning: - (सु-आहुतः) हे अग्रणेतः परमात्मन् ! यद्वा अग्ने ! त्वं सुष्ठु-आह्वानं प्राप्तः “स्वाहुतः सुष्ठु कृताह्वानः” [यजु० १५।१३ दयानन्दः] सुष्ठु होमेनाहुतो वा (उत् तिष्ठसि) साक्षाद् भवसि-उज्ज्वलसि वा (घृतानि प्रति मोदसे) देवव्रतानि मुमुक्षुकर्माणि “देवव्रतं वै घृतम्” [तां० १८।१२।६] घृतादीनि वा प्रतिकृत्य मोदयसेऽन्यान् (यत्-त्वा स्रुचः समस्थिरन्) यदा त्वां स्तुतिवाचः “वाग्वै स्रुक्” [श० ६।३।१।८] जुह्वादीनि पात्राणि सन्तिष्ठन्ते ॥२॥