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म॒मत्तु॑ त्वा दि॒व्यः सोम॑ इन्द्र म॒मत्तु॒ यः सू॒यते॒ पार्थि॑वेषु । म॒मत्तु॒ येन॒ वरि॑वश्च॒कर्थ॑ म॒मत्तु॒ येन॑ निरि॒णासि॒ शत्रू॑न् ॥

English Transliteration

mamattu tvā divyaḥ soma indra mamattu yaḥ sūyate pārthiveṣu | mamattu yena varivaś cakartha mamattu yena niriṇāsi śatrūn ||

Pad Path

म॒मत्तु॑ । त्वा॒ । दि॒व्यः । सोमः॑ । इ॒न्द्र॒ । म॒मत्तु॑ । यः । सू॒यते॑ । पार्थि॑वेषु । म॒मत्तु॑ । येन॑ । वरि॑ऽवः । च॒कर्थ॑ । म॒मत्तु॑ । येन॑ । नि॒ऽरि॒णासि॑ । शत्रू॑न् ॥ १०.११६.३

Rigveda » Mandal:10» Sukta:116» Mantra:3 | Ashtak:8» Adhyay:6» Varga:20» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:10» Mantra:3


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे राजन् ! आत्मन् ! वा (त्वा) तुझे (दिव्यः) आकाश में होनेवाला (सोमः) चन्द्रमा (ममत्तु) हर्षित करे (यः) जो (पार्थिवेषु) जो पार्थिव पृथिवीसम्बन्धी पाषाणों पर्वतों में (सूयते) उत्पन्न होता है, ऐसा ओषधिरूप सोम हर्षित करे (येन) जिस सोम राज्यैश्वर्य से (वरिवः) अपने को धनवान् (चकर्थ) बनाता है (स ममत्तु) वह हर्षित करे (येन-शत्रून्) जिस सोम अर्थात् वीर्य से शत्रुओं को (निरिणसि) निम्न करता है झुकाता है (ममत्तु) वह सोम हर्षित करे ॥३॥
Connotation: - राजा को चार प्रकार के सोमों का सेवन करना चाहिये, जो हर्ष के कारण हैं, प्रथम, आकाश का सोम-चन्द्रमा है, उसका सेवन करना चाहिये, वह मानसिक हर्ष को देता है, दूसरे-पृथिवी के ओषधिरूप सोम का रसपान करना चाहिये, तीसरे-राज्यैश्वर्य का सुचारुरूप से सेवन करना चाहिये और राष्ट्र को चलाना चाहिये, चौथे-वीर्य को शरीर में सुरक्षित रखना चाहिये, ऐसे ही आत्मा को चारों सोमों का सेवन करना चाहिये, हर्ष के लिये ॥३॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (इन्द्र) हे राजन् ! आत्मन् ! वा (त्वा) त्वां (दिव्यः सोमः-ममत्तु) दिवि-आकाशे भवः सोमश्चन्द्रः-हर्षयतु “श्लुश्छान्दसः” (यः पार्थिवेषु सूयते-ममत्तु यश्च सोमः पार्थिवेषु पृथिवीविकारेषु पृथिवीमयेषु पाषाणेषु खल्वभिषूयते सः ओषधिरूपः सोमो हर्षयतु (येन वरिवः-चकर्थ स ममत्तु) येन सोमेन राज्यैश्वर्येण स्वात्मानं वरिवस्वन्तं धनवन्तं च करोषि “वरिवः-धननाम” [निघ० २।१०] ‘मतुब्लोपश्छान्दसः’ स हर्षयतु (येन शत्रून्-निरिणासि ममत्तु) येन सोमेन रेतसा “रेतो वै सोमः” [जै० ३।२४] शत्रून् निगमयसि निम्नान् करोषि “रिणाति गतिकर्मा” [निघ० २।२४] ॥३॥