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वा॒जिन्त॑माय॒ सह्य॑से सुपित्र्य तृ॒षु च्यवा॑नो॒ अनु॑ जा॒तवे॑दसे । अ॒नु॒द्रे चि॒द्यो धृ॑ष॒ता वरं॑ स॒ते म॒हिन्त॑माय॒ धन्व॒नेद॑विष्य॒ते ॥

English Transliteration

vājintamāya sahyase supitrya tṛṣu cyavāno anu jātavedase | anudre cid yo dhṛṣatā varaṁ sate mahintamāya dhanvaned aviṣyate ||

Pad Path

वा॒जिन्ऽत॑माय । सह्य॑से । सु॒ऽपि॒त्र्य॒ । तृ॒षु । च्यवा॑नः । अनु॑ । जा॒तऽवे॑दसे । अ॒नु॒द्रे । चि॒त् । यः । धृ॒ष॒ता । वर॑म् । स॒ते । म॒हिन्ऽत॑माय । धन्व॑ना । इत् । अ॒वि॒ष्य॒ते॒ ॥ १०.११५.६

Rigveda » Mandal:10» Sukta:115» Mantra:6 | Ashtak:8» Adhyay:6» Varga:19» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:10» Mantra:6


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सुपित्र्य) अच्छे पितृभाव के योग्य सत्करणीय परमात्मन् ! (वाजिन्तमाय) अतिबलवान् (सह्यसम्) सबको प्रभावित करनेवाले (जातवेदसे) सब ज्ञान-प्रज्ञानों के आधार (महिन्तमाय) महा महिमावाले (अविष्यते) रक्षक (सते) सदा वर्त्तमान परमात्मा के लिये (तृषु) शीघ्र (अनुच्यवानः) स्तुतियों से तुझ अपने अन्दर अनुगत करता हुआ-बिठाता हुआ वर्तता हूँ (यः) जो तू (अनुद्रे चित्) जलरहित शुष्क देश में संकटस्थल में भी (धृषता) धर्षक नाशक (धन्वना-इत्) धनुष से ही (वरम्) सङ्कट का निवारण करता है ॥६॥
Connotation: - परमात्मा पिता के समान सत्करणीय महाबलवान् सब ज्ञान प्रज्ञानों का आगार महामहिमावाला रक्षक सदा वर्त्तमान है तथा जलरहित शुष्क देश में सङ्कट में भी सङ्कटनाशक अपने सामर्थ्य से सङ्कट का निवारण करनेवाला है, उस ऐसे परमात्मा को स्तुतियों द्वारा अपने अन्दर बिठाना धारण करना चाहिये ॥६॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (सुपित्र्य) शोभनपितृभावार्ह्य ! परमात्मन् ! (वाजिन्तमाय) तुभ्यमति बलवते (सह्यसे) सर्वमभिभवित्रे (जातवेदसे) जातप्रज्ञानाय (महिन्तमाय) महिमवत्तमाय-अत्यन्तमहिमवते (अविष्यते) रक्षकाय (सते) वर्त्तमानाय (तृषु-अनुच्यवानः) शीघ्रम् “तृषु क्षिप्रनाम” [निघ० २।१५] स्तुतिभिरनुगच्छन् वर्ते (यः) यः खलु (अनुद्रे चित्) अनुदके शुष्के देशे संकटस्थलेऽपि (धृषता धन्वना-इत्-वरम्) धर्षकेण धनुषा हि सङ्कटस्य निवारणं करोषीत्यर्थः ॥६॥