Word-Meaning: - (सहस्रधा) प्राणियों के शरीर-योनियाँ असंख्य हैं, उनमें (पञ्चदशानि) पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पञ्च प्राण हैं (उक्था) उक्थ-वक्तव्य-विवेचनीय प्राण हैं (यावत्-द्यावापृथिवी) जितने परिमाण में द्यावापृथिवीमय ब्रह्माण्ड है (तावत्-इत्-तत्) उतना शरीरमात्र परिमाणवाला है, जो ब्रह्माण्ड में है, सो पिण्ड में है (सहस्रधा महिमानः) असंख्यात परमात्मा की महिमाएँ हैं, क्योंकि (सहस्रं यावत्) असंख्य जितना (ब्रह्म विष्ठितम्) विविधरूप से ब्रह्माण्ड स्थित है (तावती वाक्) उतनी ही ब्रह्माण्ड का वर्णन करनेवाली वाणी है ॥८॥
Connotation: - परमात्मा की महिमाएँ अनन्त हैं, जो ब्रह्माण्ड में और पिण्ड शरीर में काम कर रही हैं। प्राणियों के शरीरों में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच प्राण तथा जितने परिमाणवाला द्यावापृथिवीमय-ब्रह्माण्ड है, इतने शरीर परिमाणवाला है, क्योंकि जो ब्रह्माण्ड में है, सो पिण्ड में है, तथा जितना ब्रह्माण्ड है, उतनी उसे वर्णन करनेवाली वाणी है-विद्या है, इसलिये शरीर और ब्रह्माण्ड के विज्ञान को जानने के लिये विद्या पढ़नी चाहिये ॥८॥