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चतु॑ष्कपर्दा युव॒तिः सु॒पेशा॑ घृ॒तप्र॑तीका व॒युना॑नि वस्ते । तस्यां॑ सुप॒र्णा वृष॑णा॒ नि षे॑दतु॒र्यत्र॑ दे॒वा द॑धि॒रे भा॑ग॒धेय॑म् ॥

English Transliteration

catuṣkapardā yuvatiḥ supeśā ghṛtapratīkā vayunāni vaste | tasyāṁ suparṇā vṛṣaṇā ni ṣedatur yatra devā dadhire bhāgadheyam ||

Pad Path

चतुः॑ऽकपर्दा । यु॒व॒तिः । सु॒ऽपेशाः॑ । घृ॒तऽप्र॑तीका । व॒युना॑नि । व॒स्ते॒ । तस्या॑म् । सु॒ऽप॒र्णा । वृष॑णा । नि । से॒द॒तुः॒ । यत्र॑ । दे॒वाः । द॒धि॒रे । भा॒ग॒ऽधेय॑म् ॥ १०.११४.३

Rigveda » Mandal:10» Sukta:114» Mantra:3 | Ashtak:8» Adhyay:6» Varga:16» Mantra:3 | Mandal:10» Anuvak:10» Mantra:3


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (चतुष्कपर्दा) ऋग्-यजुः-साम-अथर्व श्रुतिरूप चूड़ासदृश ज्ञान-चूड़ा जिसकी हैं, ऐसी अथवा कम्-सुख को कहनेवाले-दर्शानेवाले चार धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष जिसके हैं, ऐसी वेदवाणी (युवतिः) सदा युवति अर्थात् नित्य, आदि और अन्त से रहित अजर अथवा परमात्मा के साथ मिलानेवाली (सुपेशाः) सुरूपा ज्ञानात्मक होने से सर्वप्रिया (घृतप्रतीका) तेज प्रकट करनेवाले-जिसके अध्ययन से तेज प्रकट होता है, वैसी (वयुनानि वस्ते) प्रज्ञानों को प्रकृष्टरूप से आच्छादित करती है-सुरक्षित रखती है (तस्याम्) उसमें (वृष्णा) सुखवर्षक (सुपर्णा) शोभनपालन धर्मवाले जीवात्मा परमात्मा वर्णित हैं अथवा उसके आश्रय अध्यापक और अध्येता गुरु शिष्य (निषेदतुः) स्थिर हैं (यत्र) जिसमें (देवाः) विद्वान् (भागधेयम्) ज्ञान के भाग को (दधिरे) धारण करते हैं ॥३॥
Connotation: - ऋग् यजुः साम और अथर्व ज्ञानरूप ऊँची शिखासमान स्थिति अथवा धर्मार्थ काम मोक्ष ये चार सुख को बतानेवाले जिसमें हैं, ऐसी वेदवाणी अजर अमर तेज देनेवाली, परमात्मा से मिलानेवाली ज्ञान के भण्डाररूप में जीवात्मा परमात्मा का वर्णन है तथा अध्यापक और अध्येता जिसको पढ़ते रहते हैं, विद्वान् लोग ज्ञान का भाग लेते हैं, ऐसी वेदवाणी पढ़नी-पढ़ानी चाहिये ॥३॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (चतुष्कपर्दा) चत्वारः ऋग्यजुःसामाथर्वाख्याः-चूडासदृशा ज्ञानचूडाः श्रुतयो यस्याः यद्वा कं सुखं वदन्ति शब्दयन्ति ये ते कपर्दास्ते च चत्वारो-धर्मार्थकाममोक्षा विषया यस्याः सा वेदवाक् (युवतिः) सदा युवतिः-नित्या अनादिनिधना-अजर्या यद्वा परमात्मना-सह मिश्रयन्ती (सुपेशाः) सुरूपा ज्ञानात्मकत्वात् सर्वप्रिया (घृतप्रतीका) तेजःप्रतीकं प्रत्यक्तं यया यस्या अध्ययनेन भवति तथाभूता (वयुनानि वस्ते) प्रज्ञानानि प्रकृष्टज्ञानानि “वयुनं प्रज्ञानाम” [निघ० ३।९] आच्छादयति (तस्यां-वृष्णा सुपर्णा निषेदतुः) तस्यां ज्ञानवर्षकौ शोभनपालकधर्मिणौ जीवात्मपरमात्मानौ वर्णितौ स्तः, यद्वा तदाश्रयेऽध्यापकाध्येतारौ गुरुशिष्यौ नितिष्ठतः (यत्र) यस्यां (देवाः) विद्वांसः (भागधेयं दधिरे) ज्ञानस्य भागं धारयन्ति ॥३॥