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किमि॒च्छन्ती॑ स॒रमा॒ प्रेदमा॑नड्दू॒रे ह्यध्वा॒ जगु॑रिः परा॒चैः । कास्मेहि॑ति॒: का परि॑तक्म्यासीत्क॒थं र॒साया॑ अतर॒: पयां॑सि ॥

English Transliteration

kim icchantī saramā predam ānaḍ dūre hy adhvā jaguriḥ parācaiḥ | kāsmehitiḥ kā paritakmyāsīt kathaṁ rasāyā ataraḥ payāṁsi ||

Pad Path

किम् । इ॒च्छन्ती॑ । स॒रमा॑ । प्र । इ॒दम् । आ॒न॒ट् । दू॒रे । हि । अध्वा॑ । जगु॑रिः । प॒रा॒चैः । का । अ॒स्मेऽहि॑तिः । का । परि॑ऽतक्म्या । आ॒सी॒त् । क॒थम् । र॒सायाः॑ । अ॒त॒रः॒ । पयां॑सि ॥ १०.१०८.१

Rigveda » Mandal:10» Sukta:108» Mantra:1 | Ashtak:8» Adhyay:6» Varga:5» Mantra:1 | Mandal:10» Anuvak:9» Mantra:1


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BRAHMAMUNI

इस सूक्त में सरमा विद्युत्-गर्जना मेघों से जलों को निकाल बाहिर गिराती है। अध्यात्मदृष्टि से सरमा चेतना का एक देह से दूसरे देह में जाना इन्द्रियों से मुक्त होकर मोक्षप्राप्ति और उसके उपाय कहे हैं।

Word-Meaning: - वक्तव्यम्−इस सूक्त में निरुक्त के अनुसार आलङ्कारिक चर्चा है। यहाँ “सरमा” माध्यमिका वाक् मेघ के अन्दर स्तनयित्नु नाम की गर्जना है, वृष्टिविज्ञान आलङ्कारिकरूप में प्रदर्शित किया है। (सरमा) स्तनयित्नु वाक्-मेघ की गर्जना (किम्-इच्छन्ती) क्या अन्वेषण करती हुई खोजती हुई (इदं प्र-आनट्) इस स्थान को प्राप्त हुई (दूरे हि-अध्वा) दूर ही मार्ग है (पराचैः) पराञ्चनों-ज्ञानप्रकाश से विमुखों के द्वारा ये मार्ग अचित्-अलक्षित है, अतः (जगुरिः) कोई ही भलीभाँति जानेवाला इस मार्ग में जाने को समर्थ है (अस्मे) हमारे निमित्त (का हितिः) क्या अर्थहिति-अर्थभावना है (का परितक्म्या-आसीत्) कैसी रात्रि आश्रयरूप है (कथं रसायाः) कैसे अन्तरिक्षवाली नदी के (पयांसि-अतरः) जलों को पार किया-करती है ॥१॥ विवरण−मेघों में वृष्टि से पूर्व विद्युत् के चमकने से स्तनयित्नु-गर्जना सरकती हुई प्रवृत्त होती है, वह ही यहाँ अलङ्कार में सरमा कही है, मेघधारा-नदी उसके पार जाना ही सरण-उसका सरकना है, मेघों के कृष्ण वर्णवाले होने से कृष्ण आकृति ही रात्रि है। 
Connotation: - वैज्ञानिक वृष्टिविज्ञान के वेत्ता को विचार करना चाहिए कि मेघ के अन्दर गर्जना मेघधारा के-जलों को पार करती हुई चली जाती है। इसका लक्ष्य क्या है? यह गर्जना क्यों होती है? इसमें मानवों का हित क्या है? ॥१॥आध्यात्मिकयोजना−एक देह से दूसरे देह में सरणशील-गमनशील चेतना-चेतनाशक्ति आत्मा कुछ चाहती हुई-मोक्ष चाहती हुई-शरीर में प्राप्त हुई, उसका मार्ग विषयभोगों से दूर है। शरीर में प्राणों का हित क्या है? चेतना के प्राप्त होने पर माता के रस रक्त नदी को पार करके प्रकट हुई गर्भाशय को पार करके बाहर आई है ॥१॥
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BRAHMAMUNI

अत्र सूक्ते सरमायाः खलु विद्युतो गर्जनायाः प्रभावो दर्शितो मेघेभ्यो जलवृष्टिनिपातने। तथाऽऽध्यात्मिकदृष्ट्या सरमा खल्वात्मा चेतना तस्या देहाद्देहान्तरं गमनमिन्द्रियेभ्यः पृथग्भवितुं मोक्षप्रापणं तदुपायाश्च वर्णिताः सन्ति।

Word-Meaning: - वक्तव्यम्−निरुक्तानुसारतोऽत्रालङ्कारिकी चर्चा विद्यते। सरमा माध्यमिका वाक्, स्तनयित्नुवाक् “वाग् वै सरमा” [मै० सं० ४।६।४] अन्यत्र वेदे च “अपो यदद्रिं पुरुहूत दर्दराविर्भुवत् सरमा पूर्व्यं ते” [ऋ० ४।१६।८] वृष्टिविज्ञानमत्रालङ्कारेण प्रदर्श्यते, अथ मन्त्रार्थः−(सरमा) सरणशीला “सरमा सरणात्” [निरु० १।२५] स्तनयित्नु वाक् (किम्-इच्छन्ती) किमन्वेषमाणा (इदं प्र-आनट्) इदं स्थानं प्राप्ताऽभूत् (दूरे हि-अध्वा) दूरे-हि मार्गः (पराचैः) पराञ्चनैर्ज्ञानप्रकाशतो विमुखैरयं मार्गोऽचितोऽलक्षितोऽतः (जगुरिः) कश्चिदेव भृशं गन्ताऽत्र मार्गे गन्तुं शक्तः (अस्मे का हितिः) अस्मासु-अस्मन्निमित्तमर्थहितिरर्थभावना का (का परितक्म्या-आसीत्) कीदृशी च रात्रिराश्रयभूताऽस्ति “तक्मा रात्रिः” परित एनां तक्मतक्म्येत्युष्णनाम [नि० ११।२५] (कथं रसायाः-अतरः-पयांसि) कथं खलु, आन्तरिक्षनद्याः “रसा नदी रसतेः शब्दकर्मणः” [निरु० ११।२५] जलानि पारयसि त्वम् ॥१॥ विवरणम्−सत्सु मेघेषु वृष्टितः पूर्वं विद्युतो द्योतनात् स्तनयित्नु वाक् गर्जना सरणा प्रवर्तते सैवात्रालङ्कारेऽभीष्टा, मेघधारा खलु नदी तत्पारगमनं सरणं तस्या मेघानां कृष्णवर्णत्वादाकृतिर्हि रात्रिः। तदा किमग्रे खलूच्यते। अथास्य सूक्तस्य-आध्यात्मिकयोजनाऽपि प्रदर्श्यते सा चेत्थम्−देहाद्देहान्तरं सरणशीला वक्तुं समर्था चेतना किमपीच्छन्ती शरीरे प्राप्ता यं मोक्षं खल्विच्छन्ती प्राप्ता तस्य मार्गो दूरं विषयभोगेभ्यः, शरीरे प्राणानां हितं किं चेतनायाः प्रापणे मातूरस-रक्तनदीं पारं कृत्वा प्रकटीभूता गर्भाशयाद्बहिरागता ॥१॥