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उ॒द्नो ह्र॒दम॑पिब॒ज्जर्हृ॑षाण॒: कूटं॑ स्म तृं॒हद॒भिमा॑तिमेति । प्र मु॒ष्कभा॑र॒: श्रव॑ इ॒च्छमा॑नोऽजि॒रं बा॒हू अ॑भर॒त्सिषा॑सन् ॥

English Transliteration

udno hradam apibaj jarhṛṣāṇaḥ kūṭaṁ sma tṛṁhad abhimātim eti | pra muṣkabhāraḥ śrava icchamāno jiram bāhū abharat siṣāsan ||

Pad Path

उ॒द्नः । ह्र॒दम् । अ॒पि॒ब॒त् । जर्हृ॑षाणः । कूट॑म् । स्म॒ । तृं॒हत् । अ॒भिऽमा॑तिम् । ए॒ति॒ । प्र । मु॒ष्कऽभा॑रः । श्रवः॑ । इ॒च्छमा॑नः । अ॒जि॒रम् । बा॒हू इति॑ । अ॒भ॒र॒त् । सिसा॑सन् ॥ १०.१०२.४

Rigveda » Mandal:10» Sukta:102» Mantra:4 | Ashtak:8» Adhyay:5» Varga:20» Mantra:4 | Mandal:10» Anuvak:9» Mantra:4


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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (जर्हृषाणः) विद्युत्प्रयुक्त वृषभाकार यान तीव्रता को प्राप्त हुआ (उद्नः) जल के (ह्रदम्) जलाशय को (अपिबत्) पीता है (अभिमातिम्) शत्रु के प्रति (एति) आक्रमण करता है (कूटं तृंहत् स्म) पर्वत शिखर को तोड़ता है (मुष्कभारः) पिछले भाग में भार है जिसके (अजिरं श्रवः) गतिशील पतला आहार “पैट्रोल” आदि जैसे को (इच्छमानः) सेवन  करता हुआ (सिषासन्) छिन्न-भिन्न करता हुआ सा (बाहू) मित्रवरुण विद्युत् की शुष्क आर्द्र दो धाराओं ‘’पोजेटिव नेगेटिव” को (प्र अभरत्) धारण करता है ॥४॥
Connotation: - वृषभ की आकृतिवाला विद्युत्प्रयुक्त यान तीव्र गति को प्राप्त हुआ, जो बहुत बड़े जलभण्डार को पी जाता है और जिसका पीछे का भाग भारी होता है, अपनी शक्ति वेग से पर्वत के शिखर को तोड़ देता है, जो बिजली की दो तरङ्गों को धारण करता है, शत्रु के प्रति भारी आक्रमण करता है, ऐसा यान बनाना चाहिये ॥४॥
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BRAHMAMUNI

Word-Meaning: - (जर्हृषाणः-उद्नः-ह्रदम्-अपिबत्) विद्युत्प्रयुक्तो वृषभाकाररथस्तीव्रतां प्राप्यमाणो जलस्य जलाशयं जलागारमिव पिबति (अभिमातिम्-एति) शत्रुं प्रत्याक्रामति “सपत्नो वा अभिमातिः” [श० ३।९।४।९] (कूटं तृंहत् स्म) पर्वतशिखरम्-छिनत्ति त्रोटयति (मुष्कभारः-अजिरं श्रवः-इच्छमानः) मुष्के पश्चिमभागे भारो यस्य स तथाभूतः सन् गतिशीलम्-अन्नम् “पेट्रोलादिकम्” इच्छमानः “श्रवः अन्ननाम” [निघ० २।७] सेवमानः (सिषासन् बाहू प्र अभरत्) सम्भक्तुमिच्छन्निव मित्रावरुणौ स्वतरङ्गौ शुष्कार्द्रौ “Positive-Negative” “बाहू वै मित्रावरुणौ” [श० ५।४।१।१२] प्रभरति धारयति ॥४॥