Word-Meaning: - (विश्वरूपः) संसार को प्रकट करनेवाला (त्वष्टा) सबके कृत्यों का नियामक (सविता) विवस्वान् (कः) प्रजापति (देवः) देव (गर्भे नु) गर्भ में ही अर्थात् पृथिवीतल पर आने से पूर्व ही (नौ) हम दोनों को (दम्पती) पति-पत्नी (जनिता) बना चुका है। हा ! दैव नियम कैसे हैं ? कि पूर्व ही से दाम्पत्य सिद्ध होने पर भी मैं गर्भाधानरहित या सन्तानशून्य रह जाऊँ। हा ! मुझे यह दुःख सहन नहीं होता है। हम प्रजापति के सम्पादित दाम्पत्यफल के बिना ही इस घने दुःखपङ्क में रह जावेंगे। (नकिः) तो फिर (अस्य) इस प्रजापति के (व्रतानि) सारे नियम (प्रमिनन्ति) टूट जाने चाहिएँ। क्योंकि हम तो झूठ बोलते ही नहीं कि हमारा दाम्पत्य प्रजापति ने स्थिर किया था, जिसके गर्भाधानफल के लिये हम विलाप कर रहे हैं, अपितु (अस्य) इस प्रजापति का (पृथ्वी-उत-द्यौः) द्यावापृथिवी यह एक मिथुन अर्थात् जोड़ा भी (नौ) हम दोनों ‘दिन-रात’ के दाम्पत्य को (वेद) जानता है, क्योंकि हमारे दोनों के विवाह को इस जोड़े ने देखा है, अतः यह द्यावापृथिवी मिथुन भी हमारा साक्षी है ॥५॥
Connotation: - सृष्टि में जोड़े पदार्थ ईश्वरीय व्यस्था से हैं, उनके टूटने से सृष्टि नहीं चलेगी। ऐसे ही गृहस्थ-नियम का भी उल्लङ्घन न करें। वर-वधू का विवाह अन्य विवाहित जनों के साक्ष्य में होना चाहिए, संन्यासी व ब्रह्मचारी का विवाह में साक्ष्य अपेक्षित नहीं ॥५॥ समीक्षा (सायणभाष्य)-“मातुरुदरे सहवासजनित्वं दम्पतित्वं पृथिवी भूमिर्वेद जानाति, उतापि च द्यौर्द्युलोकोऽपि जानाति।” प्रस्तुत व्याख्या में द्यावापृथिवी सहवासजनित दम्पतित्व कैसे जानते हैं, इस बात को सायण अपनी कल्पनासिद्धि के आग्रह के कारण स्पष्ट न कर सके।