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वैश्वा॑नर॒ तव॒ तत्स॒त्यम॑स्त्व॒स्मान्रायो॑ म॒घवा॑नः सचन्ताम्। तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑ति॒: सिन्धु॑: पृथि॒वी उ॒त द्यौः ॥

English Transliteration

vaiśvānara tava tat satyam astv asmān rāyo maghavānaḥ sacantām | tan no mitro varuṇo māmahantām aditiḥ sindhuḥ pṛthivī uta dyauḥ ||

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Pad Path

वैश्वा॑नर। तव॑। तत्। स॒त्यम्। अ॒स्तु॒। अ॒स्मान्। रायः॑। म॒घवा॑नः। स॒च॒न्ता॒म्। तत्। नः॒। मि॒त्रः। वरु॑णः। म॒म॒ह॒न्ता॒म्। अदि॑तिः। सिन्धुः॑। पृ॒थि॒वी। उ॒त। द्यौः ॥ १.९८.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:98» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:6» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ईश्वर और विद्वान् कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वैश्वानर) सब मनुष्यों में विद्या का प्रकाश करनेहारे ईश्वर वा विद्वान् ! जो (तव) आपका (सत्यम्) सत्यशील है (तत्) वह (अस्मान्) हम लोगों को प्राप्त (अस्तु) हो, जो (मित्रः) मित्र (वरुणः) उत्तम गुणयुक्त स्वभाववाला मनुष्य (अदितिः) समस्त विद्वान् जन (सिन्धुः) अन्तरिक्ष में ठहरनेवाला जल (पृथिवी) भूमि और (द्यौः) बिजुली का प्रकाश (मामहन्ताम्) उन्नति देवे (तत्) वह ऐश्वर्य्य (नः) हम लोगों को प्राप्त हो, वा (मघवानः) जिनके परम सत्कार करने योग्य विद्या धन हैं वे विद्वान् व राजा लोग जिन (रायः) विद्या और राज्य श्री को (सचन्ताम्) निःसन्देह युक्त करें, उनको हम लोग (उत) और भी प्राप्त हों ॥ ३ ॥
Connotation: - ईश्वर और विद्वानों की उत्तेजना से सत्यशील धर्मयुक्त धन धार्मिक मनुष्य और क्रिया कौशलयुक्त पदार्थविद्याओं को पुरुषार्थ से पाकर समस्त सुख के लिये अच्छे प्रकार यत्न करें ॥ ३ ॥इस सूक्त में अग्नि और विद्वानों से सम्बन्ध रखनेवाले कर्म के वर्णन से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह ९८ अठ्ठानवाँ सूक्त और ६ छठा वर्ग पूरा हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेश्वरविद्वांसौ कीदृशावित्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे वैश्वानर यत्तव सत्यं शीलमस्ति तदस्मान् प्राप्तमस्तु। यन्मित्रो वरुणोऽदितिः सिन्धुः पृथिवी द्यौश्च मामहन्तां तदैश्वर्यमपि नोऽस्मान् प्राप्तमस्तु। मघवानो यान्रायः सचन्तां तान् वयमुताऽपि प्राप्नुयाम ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (वैश्वानर) सर्वेषु मनुष्येषु विद्याप्रकाशक (तव) (तत्) (सत्यम्) व्रतम् (अस्तु) प्राप्तं भवतु (अस्मान्) (रायः) विद्याराजश्रियः (मघवानः) मघं परमपूज्यं विद्याधनं विद्यते येषां विदुषां राज्ञां वा ते (सचन्ताम्) समवयन्तु (तत्) (नः) अस्मान् (मित्रः) सुहृत् (वरुणः) उत्तमगुणस्वभावो मनुष्यः (मामहन्ताम्) (अदितिः) विश्वेदेवाः सर्वे विद्वांसः (सिन्धुः) अन्तरिक्षस्थो जलसमूहः (पृथिवी) भूमिः (उत) (द्यौः) विद्युत्प्रकाशः ॥ ३ ॥
Connotation: - मनुष्या ईश्वरस्य विदुषां च सकाशात्सत्यं शीलं धर्म्याणि धनानि धार्मिकान् मनुष्यान् सक्रियाः पदार्थविद्याश्च पुरुषार्थेन प्राप्य सर्वसुखाय प्रयतेरन् ॥ ३ ॥अत्रेश्वराग्निविद्वत्संबन्धिकर्मवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्बोद्धव्या ॥इत्यष्टानवतितमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी ईश्वर, विद्वानांच्या साह्याने सत्य, शील, धर्मयुक्त धन, धार्मिक माणसे व क्रिया कौशल्ययुक्त पदार्थविद्यांना पुरुषार्थाने प्राप्त करून संपूर्ण सुखासाठी चांगल्या प्रकारे प्रयत्न करावा. ॥ ३ ॥