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प्र यद॒ग्नेः सह॑स्वतो वि॒श्वतो॒ यन्ति॑ भा॒नव॑:। अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घम् ॥

English Transliteration

pra yad agneḥ sahasvato viśvato yanti bhānavaḥ | apa naḥ śośucad agham ||

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Pad Path

प्र। यत्। अ॒ग्नेः। सह॑स्वतः। वि॒श्वतः। यन्ति॑। भा॒नवः॑। अप॑। नः॒। शोशु॑चत्। अ॒घम् ॥ १.९७.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:97» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:5» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब भौतिक अग्नि कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! तुम (यत्) जिस (सहस्वतः) प्रशंसित बलवाले (अग्नेः) भौतिक अग्नि की (भानवः) उजेला करती हुई किरण (विश्वतः) सब जगह से (प्रयन्ति) फैलती हैं वा जो (नः) हम लोगों के (अघम्) दरिद्रपन को (अप, शोशुचत्) दूर करता है, उसको कामों में अच्छे प्रकार जोड़ो ॥ ५ ॥
Connotation: - ऐसा कोई मूर्त्तिमान् पदार्थ नहीं कि जो इस बिजुली से अलग हो अर्थात् सब में बिजुली व्याप्त है और जो भौतिक अग्नि शिल्पविद्या से कामों में लगाया हुआ धन इकट्ठा करनेवाला होता है, वह मनुष्यों को अच्छे प्रकार जानना चाहिये ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ भौतिकोऽग्निः कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे विद्वांसो यूयं यद्यस्य सहस्वतोऽग्नेर्भानवो विश्वतः प्रयन्ति यो नोऽस्माकमघं दारिद्र्यमपशोशुचद्दूरीकरोति तं कार्येषु संप्रयुङ्ग्ध्वम् ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (प्र) (यत्) यस्य (अग्नेः) पावकस्य (सहस्वतः) प्रशस्तं सहो बलं विद्यते यस्मिन् (विश्वतः) सर्वतः (यन्ति) गच्छन्ति (भानवः) प्रदीप्ताः किरणाः (अप) (नः) (शोशुचत्) शोशुच्यात् (अघम्) दारिद्र्यम् ॥ ५ ॥
Connotation: - नह्येतया विद्युता विना मूर्त्तद्रव्यमव्याप्तमस्ति यः शिल्पविद्यया कार्येषु संप्रयुक्तोऽग्निर्धनकारी जायते स मनुष्यैः सम्यग्वेदितव्यः ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - असा कोणताही प्रत्यक्ष पदार्थ नाही जो विद्युतपासून पृथक असेल अर्थात सर्वांमध्ये विद्युत व्याप्त आहे तसेच शिल्पविद्येमध्ये संप्रयुक्त केलेला अग्नी धन देणारा असतो, हे माणसांनी चांगल्या प्रकारे जाणावे. ॥ ५ ॥