Go To Mantra

उ॒भे भ॒द्रे जो॑षयेते॒ न मेने॒ गावो॒ न वा॒श्रा उप॑ तस्थु॒रेवै॑:। स दक्षा॑णां॒ दक्ष॑पतिर्बभूवा॒ञ्जन्ति॒ यं द॑क्षिण॒तो ह॒विर्भि॑: ॥

English Transliteration

ubhe bhadre joṣayete na mene gāvo na vāśrā upa tasthur evaiḥ | sa dakṣāṇāṁ dakṣapatir babhūvāñjanti yaṁ dakṣiṇato havirbhiḥ ||

Mantra Audio
Pad Path

उ॒भे इति॑। भ॒द्रे इति॑। जो॒ष॒ये॒ते॒ इति॑। न। मेने॑। गावः॑। न। वा॒श्राः। उप॑। त॒स्थुः॒। एवैः॑। सः। दक्षा॑णाम्। दक्ष॑ऽपतिः। ब॒भू॒व॒। अ॒ञ्जन्ति॑। यम्। द॒क्षि॒ण॒तः। ह॒विःऽभिः॑ ॥ १.९५.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:95» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह समय कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (भद्रे) सुख देनेवाले (उभे) दोनों रात्रि और दिन (मेने) प्रीति करती हुई स्त्रियों के (न) समान (यम्) जिस समय को (जोषयेते) सेवन करते हैं (वाश्राः) बछड़ों को चाहती हुई (गावः) गौओं के (न) समान समय के और अङ्ग अर्थात् महीने वर्ष आदि (एवैः) सब व्यवहार को प्राप्त करानेवाले गुणों के साथ (उपतस्थुः) समीपस्थः होते हैं वा (दक्षिणतः) दक्षिणायन काल के विभाग से (हविर्भिः) यज्ञ सामग्री करके जिस समय को विद्वान् जन (अञ्जन्ति) चाहते हैं (सः) वह (दक्षाणाम्) विद्या और क्रिया की कुशलताओं में चतुर विद्वान् अत्युत्तम पदार्थों में (दक्षपतिः) विद्या तथा चतुराई का पालनेहारा (बभूव) होता है ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि रात-दिन आदि प्रत्येक समय के अवयव का अच्छी तरह सेवन करें। धर्म से उनमें यज्ञ के अनुष्ठान आदि श्रेष्ठ व्यवहारों का ही आचरण करें और अधर्म व्यवहार वा अयोग्य काम तो कभी न करें ॥ ६ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कालः कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

भद्रे उभे रात्रिदिने मेने न यं समयं जोषयेते वाश्रा गावो नेवान्ये कालावयवा एवैरुपतस्थुर्दक्षिणतो हविर्भिर्य विद्वांसोऽञ्जन्ति स कालो दक्षाणामत्युत्तमानां पदार्थानां मध्ये दक्षपतिर्बभूव ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (उभे) द्यावापृथिव्यौ (भद्रे) सुखप्रदे (जोषयेते) सेवेते। अत्र स्वार्थे णिच्। (न) उपमार्थे (मेने) वत्सले स्त्रियाविव (गावः) धेनवः (न) इव (वाश्राः) वत्सान् कामयमानाः (उप) (तस्थुः) तिष्ठन्ते (एवैः) प्रापकैर्गुणैः सह (सः) (दक्षाणाम्) विद्याक्रियाकौशलेषु चतुराणां विदुषाम् (दक्षपतिः) विद्याचातुर्य्यपालकः (बभूव) भवति (अञ्जन्ति) कामयन्ते (यम्) कालम् (दक्षिणतः) दक्षिणायनकालविभागात् (हविर्भिः) यज्ञसामग्रीभिः ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। मनुष्यै रात्रिदिनादिकालावयवाः संसेवनीयाः। धर्मतस्तेषु यज्ञानुष्ठानादिश्रेष्ठव्यवहारा एवाचरणीया न त्वन्येऽधर्मादय इति ॥ ६ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी रात्र व दिवस इत्यादी प्रत्येक काळाच्या अवयवांचा चांगल्या प्रकारे स्वीकार करावा. त्यात धर्मयुक्त यज्ञाच्या अनुष्ठानाने श्रेष्ठ व्यवहाराचे आचरण करावे. अधर्म व्यवहार किंवा अयोग्य काम तर कधीच करू नये. ॥ ६ ॥