Go To Mantra

दे॒वो दे॒वाना॑मसि मि॒त्रो अद्भु॑तो॒ वसु॒र्वसू॑नामसि॒ चारु॑रध्व॒रे। शर्म॑न्त्स्याम॒ तव॑ स॒प्रथ॑स्त॒मेऽग्ने॑ स॒ख्ये मा रि॑षामा व॒यं तव॑ ॥

English Transliteration

devo devānām asi mitro adbhuto vasur vasūnām asi cārur adhvare | śarman syāma tava saprathastame gne sakhye mā riṣāmā vayaṁ tava ||

Mantra Audio
Pad Path

दे॒वः। दे॒वाना॑म्। अ॒सि॒। मि॒त्रः। अद्भु॑तः। वसुः॑। वसू॑नाम्। अ॒सि॒। चारुः॑। अ॒ध्व॒रे। शर्म॑न्। स्या॒म॒। तव॑। स॒प्रथः॑ऽतमे। अग्ने॑। स॒ख्ये। मा। रि॒षा॒म॒। व॒यम्। तव॑ ॥ १.९४.१३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:94» Mantra:13 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:32» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:13


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर ईश्वर और सभा आदि के अधिपतियों के साथ मित्रभाव क्यों करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) जगदीश्वर वा विद्वन् ! जिस कारण आप (अध्वरे) न छोड़ने योग्य उपासनारूपी यज्ञ वा संग्राम में (देवानाम्) दिव्यगुणों से परिपूर्ण विद्वान् वा दिव्यगुणयुक्त पदार्थों में (देवः) दिव्यगुणसंपन्न (अद्भुतः) आश्चर्य्यरूप गुण, कर्म और स्वभाव से युक्त (चारुः) अत्यन्त श्रेष्ठ (मित्रः) बहुत सुख करने और सब दुःखों का विनाश करनेवाले (असि) हैं तथा (वसूनाम्) वसने और वसानेवाले मनुष्यों के बीच (वसुः) वसने और वसानेवाले (असि) हैं इस कारण (तव) आपके (सप्रथस्तमे) अच्छे प्रकार अति फैले हुए गुण, कर्म स्वभावों के साथ वर्त्तमान (शर्मन्) सुख में (वयम्) हम लोग अच्छे प्रकार निश्चित (स्याम) हों, और (तव) आपके (सख्ये) मित्रपन में कभी (मा रिषाम) बेमन न हों ॥ १३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। किसी मनुष्य को भी परमेश्वर और विद्वानों की सुख प्रकट करनेवाली मित्रता अच्छे प्रकार स्थिर नहीं होती, इससे इसमें हम-मनुष्यों को स्थिर मति के साथ प्रवृत्त होना चाहिये ॥ १३ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरीश्वरसभाद्यध्यक्षाभ्यां सह मित्रता किमर्था कार्य्येत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे अग्ने यतस्त्वमध्वरे देवानां देवोऽद्भुतश्चारुर्मित्रोऽसि वसूनां वसुरसि तस्मात्तव सप्रथस्तमे शर्मन् शर्मणि वयं सुनिश्चिताः स्याम तव सख्ये कदाचिन्मा रिषाम च ॥ १३ ॥

Word-Meaning: - (देवः) दिव्यगुणसंपन्नः (देवानाम्) दिव्यगुणसंपन्नानां विदुषां पदार्थानां वा (असि) भवसि (मित्रः) बहुसुखकारी सर्वदुःखविनाशकः (अद्भुतः) आश्चर्य्यगुणकर्मस्वभावकः (वसुः) वस्ता वासयिता वा (वसूनाम्) वसतां वासयितॄणां मनुष्याणाम् (असि) भवसि (चारुः) श्रेष्ठः (अध्वरे) अहिंसनीयेऽहातव्य उपासनाख्ये कर्त्तव्ये संग्रामे वा (शर्मन्) शर्मणि सुखे (स्याम) भवेम (तव) (सप्रथस्तमे) अतिशयितैः प्रथोभिः सुविस्तृतैः श्रेष्ठैर्गुणकर्मस्वभावैः सह वर्त्तमाने (अग्ने) जगदीश्वर विद्वन् वा (सख्ये०) इति सर्वं पूर्ववत् ॥ १३ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। नहि कस्यचित्खलु परमेश्वरस्य विदुषां च सुखकारकं मित्रत्वं सुस्थितं तस्मादेतस्मिन्सर्वैरस्मदादिभिर्मनुष्यैः सुस्थिरया बुद्ध्या प्रवर्त्तितव्यम् ॥ १३ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. कोणताही माणूस परमेश्वर व विद्वानाबरोबर दृढ मैत्री करीत नाही. त्यासाठी माणसांनी स्थिर मतीने यात प्रवृत्त झाले पाहिजे. ॥ १३ ॥