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अ॒यं मि॒त्रस्य॒ वरु॑णस्य॒ धाय॑सेऽवया॒तां म॒रुतां॒ हेळो॒ अद्भु॑तः। मृ॒ळा सु नो॒ भूत्वे॑षां॒ मन॒: पुन॒रग्ने॑ स॒ख्ये मा रि॑षामा व॒यं तव॑ ॥

English Transliteration

ayam mitrasya varuṇasya dhāyase vayātām marutāṁ heḻo adbhutaḥ | mṛḻā su no bhūtv eṣām manaḥ punar agne sakhye mā riṣāmā vayaṁ tava ||

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Pad Path

अ॒यम्। मि॒त्रस्य॑। वरु॑णस्य। धाय॑से। अ॒व॒ऽया॒ताम्। म॒रुता॒म्। हेळः॑। अद्भु॑तः। मृ॒ळ। सु। नः॒। भूतु॑। ए॒षा॒म्। मनः॑। पुनः॑। अग्ने॑। स॒ख्ये। मा। रि॒षा॒म॒। व॒यम्। तव॑ ॥ १.९४.१२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:94» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:32» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सभा आदि के अधिपति के गुणों का उपदेश करते हैं ।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) समस्त ज्ञान देनेहारे सभा आदि के अधिपति ! जिस कारण आपने (मित्रस्य) मित्र वा (वरुणस्य) श्रेष्ठ के (धायसे) धारण वा सन्तोष के लिये जो (अयम्) यह प्रत्यक्ष (अवयाताम्) धर्मविरोधी (मरुताम्) मरने जीनेवाले मनुष्यों का (अद्भुतः) अद्भुत (हेळः) अनादर किया है, उससे (एषाम्) इन (नः) हम लोगों के (मनः) मन को (पुनः) बार-बार (सुमृड) अच्छे प्रकार आनन्दित करो, ऐसे (भूतु) हो, इससे (तव) तुम्हारे (सख्ये) मित्रपन में (वयम्) हम लोग (मा, रिषाम) मत बेमन हों ॥ १२ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि सभाध्यक्ष का जो श्रेष्ठों का पालन और दुष्टों को ताड़ना देना कर्म है, उसको जानकर सदा आचरण करें ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सभाध्यक्षगुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

हे अग्ने यतस्त्वया मित्रस्य वरुणस्य धायसे योऽयमवयातां मरुतामद्भुतो हेळः क्रियते तेनैषां नोऽस्माकं मनः पुनः सुमृडैवं भूतु तस्मात् तव सख्ये वयं मा रिषाम ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (अयम्) प्रत्यक्षः (मित्रस्य) सख्युः (वरुणस्य) वरस्य (धायसे) धारणाय (अवयाताम्) धर्मविरोधिनाम् (मरुताम्) मरणधर्माणां मनुष्याणाम् (हेळः) अनादरः (अद्भुतः) आश्चर्ययुक्तः (मृड) आनन्दय। अत्रान्तर्गतो ण्यर्थः । द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घश्च। (सु) (नः) अस्माकम् (भूतु) भवतु। अत्र शपो लुक्। भूसुवोस्तिङीति गुणाभावः। (एषाम्) भद्राणाम् (मनः) अन्तःकरणम् (पुनः) मुहुर्मुहुः (अग्ने, सख्ये०) इति पूर्ववत् ॥ १२ ॥
Connotation: - मनुष्यैः सभाध्यक्षस्य यच्छ्रेष्ठानां पालनं दुष्टानां ताडनं तद्विदित्वा सदाचरणीयम् ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सभाध्यक्षाने श्रेष्ठांचे पालन व दुष्टांची ताडना केली पाहिजे. हे जाणून माणसांनी सदैव त्याचे आचरण करावे. ॥ १२ ॥