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अध॑ स्व॒नादु॒त बि॑भ्युः पत॒त्रिणो॑ द्र॒प्सा यत्ते॑ यव॒सादो॒ व्यस्थि॑रन्। सु॒गं तत्ते॑ ताव॒केभ्यो॒ रथे॒भ्योऽग्ने॑ स॒ख्ये मा रि॑षामा व॒यं तव॑ ॥

English Transliteration

adha svanād uta bibhyuḥ patatriṇo drapsā yat te yavasādo vy asthiran | sugaṁ tat te tāvakebhyo rathebhyo gne sakhye mā riṣāmā vayaṁ tava ||

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Pad Path

अध॑। स्व॒नात्। उ॒त। बि॒भ्युः॒। प॒त॒त्रिणः॑। द्र॒प्सा। यत्। ते॒। य॒व॒स॒ऽअदः॑। वि। अस्थि॑रन्। सु॒ऽगम्। तत्। ते॒। ता॒व॒केभ्यः॑। र॒थे॒भ्यः। अग्ने॑। स॒ख्ये। मा। रि॒षा॒म॒। व॒यम्। तव॑ ॥ १.९४.११

Rigveda » Mandal:1» Sukta:94» Mantra:11 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:32» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:15» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर इनके कैसे गुण हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) समस्त विज्ञान देनेहारे शिल्पिन् ! (यत्) जब (ते) तुम्हारे (यवसादः) अन्नादि पदार्थों को खानेहारे (द्रप्साः) हर्षयुक्त भृत्य वा लपट आदि गुण (सुगम्) उस मार्ग को कि जिसमें सुख से जाते हैं (वि) अनेक प्रकारों से (अस्थिरन्) स्थिर होवें (तत्) तब (ते) आपके वा इस भौतिक अग्नि के (तावकेभ्यः) जो आपके वा इस अग्नि के सिद्ध किये हुए रथ हैं उन (रथेभ्यः) विमान आदि रथों से (पतत्रिणः) पक्षियों के तुल्य शत्रु (बिभ्युः) डरें (अध) उसके अनन्तर (उत) एक निश्चय के साथ ही उन रथों के (स्वनात्) शब्द से पक्षियों के समान डरे हुए शत्रु बिलाय जाते हैं, ऐसे (तव) आपके वा इस अग्नि के (सख्ये) मित्रपन में (वयम्) हम लोग (मा, रिषाम) मत अप्रसन्न हों ॥ ११ ॥
Connotation: - जब आग्नेय अस्त्र-शस्त्र और विमानादि यानयुक्त सेना इकट्ठी कर शत्रुओं के जीतने के लिये वेग से जाकर शस्त्रों के प्रहार वा अच्छे आनन्दित शब्दों से शत्रुओं के साथ मनुष्यों का युद्ध कराया जाता है, तब दृढ़ विजय होता है यह जानना चाहिये। यह स्थिर दृढ़तर विजय, निश्चय है कि विद्वानों के विरोधियों, अग्न्यादि विद्यारहित पुरुषों का कभी नहीं हो सकता, इससे सब दिन इसका अनुष्ठान करना चाहिये ॥ ११ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरेतयोः कीदृशा गुणा इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे अग्ने यद्यदा ते तवास्याग्नेर्वा यवसादो द्रप्सा सुगं व्यस्थिरन् मार्गे वितिष्ठेरँस्तत्तदा ते तवास्य वा तावकेभ्यो रथेभ्यः पतत्रिणो बिभ्युः। अधाथोतापि तेषां रथानां स्वनात्पतत्रिणः पक्षिण इव शत्रवो भयं प्राप्ता विलीयन्त ईदृशस्य तव सख्ये वयं मा रिषाम ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (अध) अथ (स्वनात्) शब्दात् (उत) अपि (बिभ्युः) भयं प्राप्नुवन्तु (पतत्रिणः) शत्रवः पक्षिणो वा (द्रप्साः) हर्षयुक्ता भृत्या ज्वालादयो गुणा वा (यत्) यदा (ते) तवास्य वा (यवसादः) ये यवसमन्नादिकमदन्ति ते (वि) विविधार्थे (अस्थिरन्) तिष्ठेरन्। अत्र लिङर्थे लुङ् वाच्छन्दसीति झस्य रनादेशः छान्दसो वर्णलोप इति सिचः सलोपः। (सुगम्) सुखेन गच्छन्त्यस्मिन्मार्गे तम् (तत्) तदा (ते) तव (तावकेभ्यः) त्वदीयेभ्यस्तत्सिद्धेभ्यो वा (रथेभ्यः) विमानादिभ्यः (अग्ने, सख्ये०) इति पूर्ववत् ॥ ११ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्यदाऽऽग्नेयास्त्रविमानादियुक्ताः सेनाः संसाध्य शत्रुविजयार्थं वेगेन गत्वा शस्त्रास्त्रप्रहारैः सुहर्षितशब्दैः शत्रुभिः सह युध्यते तदा ध्रुवो विजयो जायत इति विज्ञेयम्। नह्येष स्थिरो विजयः खलु विद्वद्विरोधिनामग्न्यादिविद्याविरहाणां कदाचिद्भवितुं शक्यः। तस्मादेतत्सर्वदाऽनुष्ठेयम् ॥ ११ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जेव्हा आग्नेय अस्त्र-शस्त्र व विमान इत्यादी यानयुक्त सेना एकत्र करून शत्रूंना जिंकण्यासाठी वेगाने जाऊन शस्त्रांचा प्रहार करून व हर्षित करणाऱ्या शब्दांनी शत्रूंबरोबर युद्ध केले जाते तेव्हा दृढ विजय प्राप्त होतो हे जाणले पाहिजे. हा स्थिर व दृढ विजय निश्चितपणे विद्वानांचे विरोधी, अग्निविद्या न जाणणाऱ्या पुरुषांचा कधी होऊ शकत नाही. त्यामुळे नेहमी याचे अनुष्ठान करावे. ॥ ११ ॥