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उष॒स्तम॑श्यां य॒शसं॑ सु॒वीरं॑ दा॒सप्र॑वर्गं र॒यिमश्व॑बुध्यम्। सु॒दंस॑सा॒ श्रव॑सा॒ या वि॒भासि॒ वाज॑प्रसूता सुभगे बृ॒हन्त॑म् ॥

English Transliteration

uṣas tam aśyāṁ yaśasaṁ suvīraṁ dāsapravargaṁ rayim aśvabudhyam | sudaṁsasā śravasā yā vibhāsi vājaprasūtā subhage bṛhantam ||

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Pad Path

उषः॒। तम्। अ॒श्याम्। य॒शस॑म्। सु॒ऽवीर॑म्। दा॒सऽप्र॑वर्गम्। र॒यिम्। अश्व॑ऽबुध्यम्। सु॒ऽदंस॑सा। श्रव॑सा। या। वि॒ऽभासि॑। वाज॑ऽप्रसूता। सु॒ऽभ॒गे॒। बृ॒हन्त॑म् ॥ १.९२.८

Rigveda » Mandal:1» Sukta:92» Mantra:8 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:25» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:8


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उससे क्या मिलता है और वह क्या करती है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (वाजप्रसूता) सूर्य की गति से उत्पन्न हुई (सुभगा) जिसके साथ अच्छे-अच्छे ऐश्वर्य के पदार्थ संयुक्त होते हैं, वह (उषः) प्रातःसमय की वेला है, वह जिस (सुदंससा) अच्छे कर्मवाले (श्रवसा) पृथिवी आदि अन्न के साथ वर्त्तमान वा (अश्वबुध्यम्) जिस सहायता से घोड़े सिखाये जाते (दासप्रवर्गम्) जिससे सेवक अर्थात् दासी काम करनेवाले रह सकते हैं (सुवीरम्) जिससे अच्छे सीखे हुए वीरजन हों, उस (बृहन्तम्) सर्वदा अत्यन्त बढ़ते हुए और (यशसम्) सब प्रकार प्रशंसायुक्त (रयिम्) विद्या और राज्य धन को (विभासि) अच्छे प्रकार प्रकाशित करती है, (तम्) उसको मैं (अश्याम्) पाऊँ ॥ ८ ॥
Connotation: - जो लोग प्रातःकाल की वेला के गुण-अवगुणों को जतानेवाली विद्या से अच्छे-अच्छे यत्न करते हैं, वे यह सब वस्तु पाकर सुख से परिपूर्ण होते हैं किन्तु और नहीं ॥ ८ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तया किं प्राप्यते सा किं करोतीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

या वाजप्रसूता सुभगा उषरुषा अस्ति सा यं सुदंससा श्रवसा सह वर्त्तमानमश्वबुध्यं दासप्रवर्गं सुवीरं बृहन्तं यशसं रयिं विभासि विविधतया प्रकाशयति तमहमश्यां प्राप्नुयाम् ॥ ८ ॥

Word-Meaning: - (उषः) उषाः (तम्) (अश्याम्) प्राप्नुयाम्। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदं बहुलं छन्दसीति विकरणस्य लुक्। (यशसम्) अतिकीर्त्तियुक्तम्। (सुवीरम्) शोभनाः सुशिक्षिता वीरा यस्मात्तम् (दासप्रवर्गम्) दासानां सेवकानां प्रवर्गाः समूहा यस्मिँस्तम् (रयिम्) विद्याराज्यश्रियम् (अश्वबुध्यम्) अश्वा बुध्यन्ते सुशिक्षन्ते येन तम् (सुदंससा) शोभनानि दंसांसि कर्माणि यस्मिन् (श्रवसा) पृथिव्याद्यन्नेन सह (या) (विभासि) विविधान् दीपयति (वाजप्रसूता) वाजेन सूर्यस्य गमनेन प्रसूतोत्पन्ना (सुभगे) शोभना भगा ऐश्वर्ययोगा यस्याः सा (बृहन्तम्) सर्वदा वृद्धियोगेन महत्तमम् ॥ ८ ॥
Connotation: - य उषर्विद्यया प्रयतन्ते त एवैतत्सर्वं वस्तु प्राप्य संपन्ना भूत्वा सदानन्दन्ति नेतरे ॥ ८ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक प्रातःकाळच्या वेळेचे गुण-अवगुण सांगणाऱ्या विद्येद्वारे चांगले प्रयत्न करतात. त्यांना सर्व वस्तू प्राप्त होऊन ते सुखाने परिपूर्ण होतात, इतर होऊ शकत नाहीत. ॥ ८ ॥