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व्यू॒र्ण्व॒ती दि॒वो अन्ताँ॑ अबो॒ध्यप॒ स्वसा॑रं सनु॒तर्यु॑योति। प्र॒मि॒न॒ती म॑नु॒ष्या॑ यु॒गानि॒ योषा॑ जा॒रस्य॒ चक्ष॑सा॒ वि भा॑ति ॥

English Transliteration

vyūrṇvatī divo antām̐ abodhy apa svasāraṁ sanutar yuyoti | praminatī manuṣyā yugāni yoṣā jārasya cakṣasā vi bhāti ||

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Pad Path

वि॒ऽऊ॒र्ण्व॒ती। दि॒वः। अन्ता॑न्। अ॒बो॒धि॒। अप॑। स्वसा॑रम्। स॒नु॒तः। यु॒यो॒ति॒। प्र॒ऽमि॒न॒ती। म॒नु॒ष्या॑। यु॒गानि॑। योषा॑। जा॒रस्य॑। चक्ष॑सा। वि। भा॒ति॒ ॥ १.९२.११

Rigveda » Mandal:1» Sukta:92» Mantra:11 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:26» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसी है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो प्रातःकाल की वेला जैसे (योषा) कामिनी स्त्री (जारस्य) व्यभिचारी लम्पट कुमार्गी पुरुष की उमर का नाश करे, वैसे सब आयुर्दा को (सनुतः) निरन्तर (प्रमिनती) नाश करती (स्वसारम्) और अपनी बहिन के समान जो रात्रि है, उसको (व्यूर्ण्वती) ढाँपती हुई (अपयुयोति) उसको दूर करती अर्थात् दिन से अलग करती है और आप (वि) अच्छी प्रकार (भाति) प्रकाशित होती जाती है (चक्षसा) उस प्रातःसमय की वेला के निमित्त उससे दर्शन (दिवः) प्रकाशवान् सूर्य्य के (अन्तान्) समीप के पदार्थों को और (मनुष्या) मनुष्यों के सम्बन्धी (युगानी) वर्षों को (अबोधि) जनाती है, उसका सेवन तुम युक्ति से किया करो ॥ ११ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जैसे व्यभिचारिणी स्त्री जारकर्म करनेहारे पुरुष की उमर का विनाश करती है, वैसे सूर्य्य से सम्बन्ध रखनेहारे अन्धकार की निवृत्ति से दिन को प्रसिद्ध करनेवाली प्रातःकाल की वेला है, ऐसा जानकर रात और दिन के बीच युक्ति के साथ वर्त्ताव वर्त्तकर पूरी आयुर्दा को भोगें ॥ ११ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः सा कीदृशीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे मनुष्या योषा जारस्य योषेव सर्वेषामायुः सनुतः प्रमिनती या स्वसारं व्यूर्ण्वत्यपयुयोति स्वयं बिभाति चक्षसा दिवोऽन्तान् मनुष्या युगानि चाबोधि सा यथावत्सेव्या ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (व्यूर्ण्वती) विविधान् पदार्थानाच्छादयन्ती (दिवः) प्रकाशमयस्य सूर्यस्य (अन्तान्) समीपस्थान् पदार्थान् (अबोधि) बोधयति (अप) निवारणे (स्वसारम्) भगिनीस्वरूपां रात्रिम् (सनुतः) सततम् (युयोति) मिश्रयति (प्रमिनती) प्रकृष्टतया हिंसन्ती (मनुष्या) मनुष्याणां सम्बन्धीनी (युगानि) संवत्सरादीनि (योषा) कामिनी स्त्रीव (जारस्य) लम्पटस्य रात्रेर्जरयितुः सूर्यस्य वा (चक्षसा) तन्निमित्तभूतेन दर्शनेन (वि) विशेषे (भाति) प्रकाशते ॥ ११ ॥
Connotation: - अत्रा वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्यथा व्यभिचारिणी स्त्री जारपुरुषस्यायुः प्रणाशयति तथा सूर्यस्य सम्बन्ध्यन्धकारनिवारणेन दिनकारिण्युषा वर्त्तत इति बुध्वा रात्रिंदिवयोर्मध्ये युक्त्या वर्त्तित्वा पूर्णमायुर्भोक्तव्यम् ॥ ११ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे व्यभिचारिणी स्त्री जारकर्म करणाऱ्या पुरुषाच्या आयूचा नाश करते तसे सूर्याशी संबंध ठेवणारी अंधकाराचा नाश करून दिवस प्रकट करणारी प्रातःकाळची वेळ आहे हे जाणून रात्र व दिवस यांच्यामध्ये युक्तीने वर्तन करून पूर्ण आयुष्य भोगावे. ॥ ११ ॥