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त्वं सो॑म म॒हे भगं॒ त्वं यून॑ ऋताय॒ते। दक्षं॑ दधासि जी॒वसे॑ ॥

English Transliteration

tvaṁ soma mahe bhagaṁ tvaṁ yūna ṛtāyate | dakṣaṁ dadhāsi jīvase ||

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Pad Path

त्वम्। सो॒म॒। म॒हे। भग॑म्। त्वम्। यूने॑। ऋ॒त॒ऽय॒ते। दक्ष॑म्। द॒धा॒सि॒। जी॒वसे॑ ॥ १.९१.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:91» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:20» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे (सोम) परमेश्वर ! वा सोम अर्थात् औषधियों का समूह (त्वम्) विद्या और सौभाग्य के देनेहारे आप वा यह सोम (ऋतायते) अपने को विशेष ज्ञान की इच्छा करनेहारे (महे) अति उत्तम गुणयुक्त (यूने) ब्रह्मचर्य्य और विद्या से शरीर और आत्मा की तरुण अवस्था को प्राप्त हुए ब्रह्मचारी के लिये (भगम्) विद्या और धनराशि तथा (त्वम्) आप (जीवसे) जीने के अर्थ (दक्षम्) बल को (दधासि) धारण कराने से सबको चाहने योग्य हैं ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। मनुष्यों को परस्पर विद्वान् और ओषधियों के सेवन के विना सुख होने को योग्य नहीं है, इससे यह आचरण सबको नित्य करने योग्य है ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे सोम त्वमयं च ऋतायते महे यूने भगं तथा त्वं जीवसे दक्षं दधासि तस्मात्सर्वैः संगमनीयः ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) विद्यासौभाग्यप्रदः (सोम) सोमायं वा (महे) महापूज्यगुणाय (भगम्) विद्या श्रीसमूहम् (त्वम्) (यूने) ब्रह्मचर्य्यविद्याभ्यां शरीरात्मनोर्युवावस्थां प्राप्ताय (ऋतायते) आत्मन ऋतं विज्ञानमिच्छते (दक्षम्) बलम् (दधासि) (जीवसे) जीवितुम् ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। नहि मनुष्याणां परमेश्वरस्य विदुषामोषधीनां च सेवनेन विना सुखं भवितुमर्हति तस्मादेतत्सर्वैर्नित्यमनुष्ठेयम् ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. माणसांनी विद्वानांचे व औषधांचे सेवन करावे त्याशिवाय सुख मिळू शकत नाही. त्यामुळे असे आचरण सर्वांनी सदैव करावे. ॥ ७ ॥