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त्वं सो॑मासि॒ सत्प॑ति॒स्त्वं राजो॒त वृ॑त्र॒हा। त्वं भ॒द्रो अ॑सि॒ क्रतु॑: ॥

English Transliteration

tvaṁ somāsi satpatis tvaṁ rājota vṛtrahā | tvam bhadro asi kratuḥ ||

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Pad Path

त्वम्। सो॒म॒। अ॒सि॒। सत्ऽप॑तिः। त्वम्। राजा॑। उ॒त। वृ॒त्र॒ऽहा। त्वम्। भ॒द्रः। अ॒सि॒। क्रतुः॑ ॥ १.९१.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:91» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:19» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह सोम कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (सोम) समस्त संसार के उत्पन्न करने वा सब विद्याओं के देनेवाले ! (त्वम्) परमेश्वर वा पाठशाला आदि व्यवहारों के स्वामी विद्वान् आप (सत्पतिः) अविनाशी जो जगत् कारण वा विद्यमान कार्य्य जगत् है, उसके पालनेहारे (असि) हैं (उत) और (त्वम्) आप (वृत्रहा) दुःख देनेवाले दुष्टों के विनाश करनेहारे (राजा) सबसे स्वामी विद्या के अध्यक्ष हैं वा जिस कारण (त्वम्) आप (भद्रः) अत्यन्त सुख करनेवाले हैं वा (क्रतुः) समस्त बुद्धियुक्त वा बुद्धि देनेवाले (असि) हैं, इसीसे आप सब विद्वानों के सेवने योग्य हैं ॥ ५ ॥द्वितीय-(सोम) सब ओषधियों का गुणदाता सोम ओषधि (त्वम्) यह ओषधियों में उत्तम (सत्पतिः) ठीक-ठीक पथ्य करनेवाले जनों की पालना करनेहारा है (उत) और (त्वम्) यह सोम (वृत्रहा) मेघ के समान दोषों का नाशक (राजा) रोगों के विनाश करने के गुणों का प्रकाश करनेवाला है वा जिस कारण (त्वम्) यह (भद्रः) सेवने के योग्य वा (क्रतुः) उत्तम बुद्धि का हेतु है, इसी से वह सब विद्वानों के सेवने के योग्य है।
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। परमेश्वर, विद्वान्, सोमलता आदि ओषधियों का समूह, ये समस्त ऐश्वर्य को प्रकाश करने, श्रेष्ठों की रक्षा करने और उनके स्वामी, दुःख का विनाश करने, और विज्ञान के देनेहारे और कल्याणकारी हैं, ऐसा अच्छी प्रकार जान के सबको इनका सेवन करना योग्य है ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स सोम कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे सोम यतस्त्वमयं सोमो वा सत्पतिरस्युतापि त्वमयं च वृत्रहा च राजासि अस्ति वा यतस्त्वमयं च भद्रोऽसि भवति वा क्रतुरसि भवति वा तस्मात् त्वमयं च विद्वद्भिः सेव्यः ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) परमेश्वरः शालाध्यक्ष ओषधिराजो वा (सोम) सकलजगदुत्पादक सर्वविद्याप्रद सर्वौषधिगुणप्रदो वा (अस्ति) वा (सत्पतिः) सतोऽविनाशिनः कारणस्य विद्यमानस्य कार्य्यस्य सत्यपथ्यकारिणां वा पालकः (त्वम्) (राजा) सर्वाध्यक्षो विद्याध्यक्षो रोगनाशकगुणप्रकाशको वा (उत) अपि (वृत्रहा) यो दुःखप्रदान् शत्रून् मेघदोषान्वा हन्ति सः (त्वम्) (भद्रः) कल्याणकारकः सेवनीयो वा (असि) भवति वा (क्रतुः) प्रज्ञामयः प्रज्ञाप्रदः प्रज्ञाहेतुर्वा ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। परमेश्वरो विद्वान् सोमलताद्योषधिगणो वा सर्वैश्वर्यप्रकाशकः सतां रक्षकोऽधिपतिर्दुःखविनाशको विज्ञानप्रदः कल्याणकार्य्यस्तीति सम्यग्विदित्वा सेव्यः ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. परमेश्वर, विद्वान, सोमलता इत्यादी औषधींचा समूह हे संपूर्ण ऐश्वर्य देणारे, श्रेष्ठांचे रक्षण करणारे, अधिपती, दुःखांचा नाश करणारे व विज्ञान देणारे, कल्याणकारी आहेत हे चांगल्या प्रकारे जाणून सर्वांनी त्यांचा अंगीकार करणे योग्य आहे. ॥ ५ ॥