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दे॒वेन॑ नो॒ मन॑सा देव सोम रा॒यो भा॒गं स॑हसावन्न॒भि यु॑ध्य। मा त्वा त॑न॒दीशि॑षे वी॒र्य॑स्यो॒भये॑भ्य॒: प्र चि॑कित्सा॒ गवि॑ष्टौ ॥

English Transliteration

devena no manasā deva soma rāyo bhāgaṁ sahasāvann abhi yudhya | mā tvā tanad īśiṣe vīryasyobhayebhyaḥ pra cikitsā gaviṣṭau ||

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Pad Path

दे॒वेन॑। नः॒। मन॑सा। दे॒व॒। सो॒म॒। रा॒यः। भा॒गम्। स॒ह॒सा॒ऽव॒न्। अ॒भि। यु॒ध्य॒। मा। त्वा। त॒न॒त्। ईशि॑षे। वी॒र्य॑स्य। उ॒भये॑भ्यः। प्र। चि॒कि॒त्स॒। गोऽइ॑ष्टौ ॥ १.९१.२३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:91» Mantra:23 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:23» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:23


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे (सहसावन्) अत्यन्त बलवान् (देव) दिव्यगुणसम्पन्न (सोम) सर्व विद्या और सेना के अध्यक्ष ! आप (देवेन) दिव्यगुणयुक्त (मनसा) विचार से (रायः) राज्यधन के लाभ को (अभि) शत्रुओं के सम्मुख (युध्य) युद्ध कीजिये जो आप (नः) हमारे लिये धन के (भागम्) भाग के (ईशिषे) स्वामी हो उस (त्वा) तुझको (गविष्टौ) इन्द्रिय और भूमि के राज्य के प्रकाशों की सङ्गतियों में शत्रु (मा तनत्) पीड़ायुक्त न करें। आप (वीर्यस्य) पराक्रम को (उभयेभ्यः) अपने और पराये योद्धाओं से (मा प्रचिकित्स) संशययुक्त मत हो ॥ २३ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि परम उत्तम सेनाध्यक्ष और ओषधिगण का आश्रय और युद्ध में प्रवृत्ति कर उत्साह के साथ अपनी सेना को जोड़ और शत्रुओं की सेना का पराजय कर चक्रवर्त्ति राज्य के ऐश्वर्य को प्राप्त हों ॥ २३ ॥इस सूक्त में पढ़ने-पढ़ानेवालों आदि की विद्या के पढ़ने आदि कामों की सिद्धि करनेवाले (सोम) शब्द के अर्थ के कथन से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह ९१ इक्कानवाँ सूक्त और वर्ग २३ तेईस समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे सहसावन् देव सोम त्वं देवेन मनसा शत्रुभिः सह रायोऽभियुध्य यस्त्वं नोऽस्मभ्यम् रायो भागमीशिषे तं त्वा गविष्टौ शत्रुर्मा तनत् क्लेशयुक्तं क्लेशप्रदं वा मा कुर्यात् त्वं वीर्यस्योभयेभ्यो मा प्रचिकित्स ॥ २३ ॥

Word-Meaning: - (देवेन) दिव्यगुणसम्पन्नेन (नः) अस्मभ्यम् (मनसा) शिल्पक्रियादिविचारेण (देव) दिव्यगुणसम्पन्न (सोम) सर्वविद्यायुक्त (रायः) धनस्य (भागम्) भजनीयमंशम् (सहसावन्) अत्यन्तबलवन्। सहसेत्यव्ययम्। भूमार्थे मतुप् च। (अभि) आभिमुख्ये (युध्य) युध्यस्व। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदम्। (मा) निषेधे (त्वा) (तनत्) विस्तारयेत् (ईशिषे) (वीर्यस्य) पराक्रमस्य (उभयेभ्यः) सोमाद्योषधिगणेभ्यः शत्रुभ्यश्च (प्र) (चिकित्स) (गविष्टौ) गवामिन्द्रियपृथिवीराज्यविद्याप्रकाशानामिष्टयो यस्मिँस्तस्मिन् ॥ २३ ॥
Connotation: - मनुष्यैः परमोत्तमस्य सेनाध्यक्षस्यौषधिगणस्य वाश्रयं कृत्वा युद्धं प्रवृत्योत्साहे स्वसेनां संयोज्य शत्रुसेनां पराजय्य चक्रवर्त्तिराज्यैश्वर्य प्राप्तव्यमिति ॥ २३ ॥अत्राध्येत्रध्यापकादीनां विद्याध्ययनादिकर्मणां च सिद्धिकारकस्य सोमार्थस्योक्तत्वादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥ इत्येकनवतितमं सूक्तं ९१ वर्गश्च २३ समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी अत्यंत उत्तम सेनाध्यक्ष व औषधींचा आश्रय घ्यावा व युद्धाची प्रवृत्ती ठेवून उत्साहाने आपली सेना जमवावी आणि शत्रूच्या सेनेचा पराभव करून चक्रवर्ती राज्याचे ऐश्वर्य प्राप्त करावे. ॥ २३ ॥