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यः सो॑म स॒ख्ये तव॑ रा॒रण॑द्देव॒ मर्त्य॑:। तं दक्ष॑: सचते क॒विः ॥

English Transliteration

yaḥ soma sakhye tava rāraṇad deva martyaḥ | taṁ dakṣaḥ sacate kaviḥ ||

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Pad Path

यः। सो॒म॒। स॒ख्ये। तव॑। रा॒रण॑त्। दे॒व॒। मर्त्यः॑। तम्। दक्षः॑। स॒च॒ते॒। क॒विः ॥ १.९१.१४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:91» Mantra:14 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:21» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे (देव) दिव्यगुणों को प्राप्त करानेवाले वा अच्छे गुणों का हेतु (सोम) वैद्यराज विद्वान् वा यह उत्तम ओषधि ! (यः) जो (तव) आप वा इसके (सख्ये) मित्रपन वा मित्र के काम में (दक्षः) शरीर और आत्मबलयुक्त (कविः) दर्शनीय वा अव्याहत प्रज्ञायुक्त (मर्त्यः) मनुष्य (रारणत्) संवाद करता और (सचते) संबन्ध रखता है (तम्) उस मनुष्य को सुख क्यों न प्राप्त होवें ॥ १४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जो मनुष्य परमेश्वर, विद्वान् वा उत्तम ओषधि के साथ मित्रपन करते हैं, वे विद्या को प्राप्त होके कभी दुःखभागी नहीं होते ॥ १४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे देव सोम यस्तव सख्ये दक्षः कविर्मर्त्यो रारणत् सचते च तं सुखं कथं न प्राप्नुयात् ॥ १४ ॥

Word-Meaning: - (यः) (सोम) विद्वन् (सख्ये) मित्रस्य भावाय कर्मणे वा (तव) (रारणत्) उपसंवदते। अत्र रणधातोर्बहुलं छन्दसीति शपः स्थाने श्लुः। लडर्थे लेट् च। तुजादित्वाद्दीर्घः। (देव) दिव्यगुणप्रापक दिव्यगुणनिमित्तो वा (मर्त्यः) मनुष्यः (तम्) मनुष्यम् (दक्षः) विद्यमानशरीरात्मबलः (सचते) समवैति (कविः) क्रान्तप्रज्ञादर्शनः ॥ १४ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। ये मनुष्याः परमेश्वरेण विद्वद्भिरुत्तमौषधिभिर्वा सह मित्रभावं कुर्वन्ति ते विद्यां प्राप्य न कदाचिददुःखभागिनो भवन्ति ॥ १४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जी माणसे परमेश्वर, विद्वान किंवा उत्तम औषधी यांच्याशी मैत्री करतात ती विद्या प्राप्त करतात व कधी दुःखी होत नाहीत. ॥ १४ ॥