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ग॒य॒स्फानो॑ अमीव॒हा व॑सु॒वित्पु॑ष्टि॒वर्ध॑नः। सु॒मि॒त्रः सो॑म नो भव ॥

English Transliteration

gayasphāno amīvahā vasuvit puṣṭivardhanaḥ | sumitraḥ soma no bhava ||

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Pad Path

ग॒य॒ऽस्फानः॑। अ॒मी॒व॒ऽहा। व॒सु॒ऽवित्। पु॒ष्टि॒ऽवर्ध॑नः। सु॒ऽमि॒त्रः। सो॒म॒। नः॒। भ॒व॒ ॥ १.९१.१२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:91» Mantra:12 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:21» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

Word-Meaning: - हे (सोम) परमेश्वर वा विद्वन् ! जिस कारण आप वा यह उत्तमौषध (नः) हम लोगों के (गयस्फानः) प्राणों के बढ़ाने वा (अमीवहा) अविद्या आदि दोषों तथा ज्वर आदि दुःखों के विनाश करने वा (वसुवित्) द्रव्य आदि पदार्थों के ज्ञान कराने वा (सुमित्रः) जिनसे उत्तम कामों के करनेवाले मित्र होते हैं वैसे (पुष्टिवर्द्धनः) शरीर और आत्मा की पुष्टि को बढ़ानेवाले (भव) हूजिये वा यह ओषधिसमूह हम लोगों को यथायोग्य उक्त गुण देनेवाला होवे, इससे आप और यह हम लोगों के सेवने योग्य हैं ॥ १२ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। प्राणियों को ईश्वर और ओषधियों के सेवन और विद्वानों के सङ्ग के विना रोगनाश, बलवृद्धि, पदार्थों का ज्ञान, धन की प्राप्ति तथा मित्रमिलाप नहीं हो सकता, इससे उक्त पदार्थों का यथायोग्य आश्रय और सेवा सबको करनी चाहिये ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे सोम यतस्त्वं नोऽस्माकं गयस्फानोऽमीवहा वसुवित्सुमित्रः पुष्टिवर्धनो भव भवसि वा तस्मादस्माभिः सेव्यः ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (गयस्फानः) गयानां प्राणानां वर्धयिता। स्फायी वृद्धावित्यस्माद्धातोर्नन्द्यादेराकृतिगणत्वाल्ल्युः। छान्दसो वर्णलोप इति यलोपः। अत्र सायणाचार्येण स्फान इति कर्त्तरि ल्युडन्तं व्याख्यातं तदशुद्धम्। (अमीवहा) अमीवानामविद्यादीनां ज्वरादीनां वा हन्ता (वसुवित्) वसूनि सर्वाणि द्रव्याणि विदन्ति ये येन वा (पुष्टिवर्द्धनः) शरीरात्मपुष्टेर्वर्धयिता (सुमित्रः) शोभनाः सुष्ठुकारिणो मित्रा यतः (सोम) (नः) अस्माकम् (भव) भवतु वा ॥ १२ ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। नहि प्राणिनामीश्वरस्यौषधीनां च सेवनेन विदुषां सङ्गेन च विना रोगनाशो बलवर्द्धनं द्रव्यज्ञानं धनप्राप्तिः सुहृन्मेलनं च भवितुं शक्यं तस्मादेतेषां समाश्रयः सेवा च सर्वैः कार्या ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. प्राण्यांना ईश्वर व औषधांचे सेवन व विद्वानांचा संग याशिवाय रोगनाश, बलवृद्धी, पदार्थांचे ज्ञान, धनाची प्राप्ती व मित्रांचा मिलाफ होऊ शकत नाही. त्यामुळे वरील पदार्थांचा यथायोग्य आश्रय घेतला पाहिजे व सर्वांची सेवा केली पाहिजे. ॥ १२ ॥