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इ॒मं य॒ज्ञमि॒दं वचो॑ जुजुषा॒ण उ॒पाग॑हि। सोम॒ त्वं नो॑ वृ॒धे भ॑व ॥

English Transliteration

imaṁ yajñam idaṁ vaco jujuṣāṇa upāgahi | soma tvaṁ no vṛdhe bhava ||

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Pad Path

इ॒मम्। य॒ज्ञम्। इ॒दम्। वचः॑। जु॒जु॒षा॒णः। उ॒प॒ऽआग॑हि। सोम॑। त्वम्। नः॒। वृ॒धे। भ॒व॒ ॥ १.९१.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:91» Mantra:10 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:20» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह क्या करता है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (सोम) परमेश्वर वा विद्वन् ! जिससे (इमम्) इस (यज्ञम्) विद्या की रक्षा करनेवाले वा शिल्प कर्मों से सिद्ध किये हुए यज्ञ को तथा (इदम्) इस विद्या और धर्मसंयुक्त (वचः) वचन को (जुजुषाणः) प्रीति से सेवन करते हुए (त्वम्) आप (उपागहि) समीप प्राप्त होते हैं वा यह सोम आदि ओषधिगण समीप प्राप्त होता है (नः) हम लोगों की (वृधे) वृद्धि के लिये (भव) हूजिये वा उक्त ओषधिगण होवें ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जब विज्ञान से ईश्वर और सेवा तथा कृतज्ञता से विद्वान्, वैद्यकविद्या वा उत्तम क्रिया से ओषधियाँ मिलती हैं, तब मनुष्यों के सब सुख उत्पन्न होते हैं ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स किं करोतीत्युपदिश्यते ।

Anvay:

हे सोम यत इमं यज्ञमिदं वचो जुजुषाणः संस्त्वमुपागहि। उपागच्छति वाऽतो नो वृधे भव भवतु वा ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (इमम्) प्रत्यक्षम् (यज्ञम्) विद्यारक्षाकारकं शिल्पसिद्धं वा (इदम्) विद्याधर्मयुक्तम् (वचः) वचनम् (जुजुषाणः) सेवमानः (उपागहि) उपागच्छ उपागच्छति वा (सोम) (त्वम्) (नः) अस्माकम् (वृधे) वृद्धये (भव) भवति वा ॥ १० ॥
Connotation: - अत्र श्लेषालङ्कारः। यदा विज्ञानेनेश्वरः सेवाकृतज्ञताभ्यां विद्वांसो वैद्यकसत्क्रियाभ्यामोषधिगणश्चोपागता भवन्ति तदा मनुष्याणां सर्वाणि सुखानि जायन्ते ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जेव्हा विज्ञानाने ईश्वर मिळतो व सेवा आणि कृतज्ञता यांनी विद्वान मिळतो. वैद्यक विद्या व उत्तम क्रियेद्वारे औषधी मिळतात तेव्हा माणसांना सर्व सुख प्राप्त होते. ॥ १० ॥