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मधु॒ नक्त॑मु॒तोषसो॒ मधु॑म॒त्पार्थि॑वं॒ रजः॑। मधु॒ द्यौर॑स्तु नः पि॒ता ॥

English Transliteration

madhu naktam utoṣaso madhumat pārthivaṁ rajaḥ | madhu dyaur astu naḥ pitā ||

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Pad Path

मधु॑। नक्त॑म्। उ॒त। उ॒षसः॑। मधु॑ऽमत्। पार्थि॑वम्। रजः॑। मधु॑। द्यौः। अ॒स्तु॒। नः॒। पि॒ता ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:90» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:18» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर हम किसके लिये किस पुरुषार्थ को करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जैसे (नः) हम लोगों के लिये (नक्तम्) रात्रि (मधु) मधुर (उषसः) दिन मधुर गुणवाले (पार्थिवम्) पृथिवी में (रजः) अणु और त्रसरेणु आदि छोटे-छोटे भूमि के कणके (मधुमत्) मधुर गुणों से युक्त सुख करनेवाले (उत) और पिता पालन करनेवाली (द्यौः) सूर्य्य की कान्ति (मधु) मधुर गुणवाली (अस्तु) हो, वैसे तुम लोगों के लिये भी हो ॥ ७ ॥
Connotation: - पढ़ानेवाले लोगों से जैसे मनुष्यों के लिये पृथिवीस्थ पदार्थ आनन्दायक हों, वैसे सब मनुष्यों को गुण, ज्ञान, और हस्तक्रिया से विद्या का उपयोग करना चाहिए ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्वयं कस्मै कं पुरुषार्थं कुर्य्यामेत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! यथा नोऽस्मभ्यं नक्तं मधूषसो मधूनि पार्थिवं रजो मधुमदुत पिता द्यौर्मध्वस्तु तथा युष्मभ्यमप्येते स्युः ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (मधु) मधुरा (नक्तम्) रात्रिः (उत) अपि (उषसः) दिवसानि (मधुमत्) मधुरगुणयुक्तम् (पार्थिवम्) पृथिव्यां विदितम् (रजः) अणुत्रसरेण्वादि (मधु) माधुर्यसुखकारिका (द्यौः) सूर्यकान्तिः (अस्तु) भवतु (नः) अस्मभ्यम् (पिता) पालकः ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अध्यापकैर्यथा मनुष्येभ्यः पृथिवीस्थाः पदार्था आनन्दप्रदाः स्युस्तथा गुणज्ञानेन हस्तक्रियया च विद्योपयोगः सर्वैरनुष्ठेयः ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जसे माणसांसाठी पृथ्वीवरील पदार्थ आनंददायक असतात. तसे अध्यापकांनी सर्व माणसांना गुण, ज्ञान व हस्तक्रियांनी विद्येचा उपयोग करून दिला पाहिजे. ॥ ७ ॥