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अ॒स्मान्त्सु तत्र॑ चोद॒येन्द्र॑ रा॒ये रभ॑स्वतः। तुवि॑द्युम्न॒ यश॑स्वतः॥

English Transliteration

asmān su tatra codayendra rāye rabhasvataḥ | tuvidyumna yaśasvataḥ ||

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Pad Path

अ॒स्मान्। सु। तत्र॑। चो॒द॒य॒। इन्द्र॑। रा॒ये। रभ॑स्वतः। तुवि॑ऽद्युम्न। यश॑स्वतः॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:9» Mantra:6 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:18» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:3» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अन्तर्यामी ईश्वर हम लोगों को कैसे-कैसे कामों में प्रेरणा करे, इस विषय का अगले मन्त्र में प्रकाश किया है-

Word-Meaning: - हे (तुविद्युम्न) अत्यन्त विद्यादिधनयुक्त (इन्द्र) अन्तर्यामी ईश्वर ! (रभस्वतः) जो आलस्य को छोड़ के कार्य्यों के आरम्भ करनेवाले (यशस्वतः) सत्कीर्तिसहित (अस्मान्) हम लोग पुरुषार्थी विद्या धर्म और सर्वोपकार से नित्य प्रयत्न करनेवाले मनुष्यों को (तत्र) श्रेष्ठ पुरुषार्थ में (राये) उत्तम-उत्तम धन की प्राप्ति के लिये (सुचोदय) अच्छी प्रकार युक्त कीजिये ॥६॥
Connotation: - सब मनुष्यों को उचित है कि इस सृष्टि में परमेश्वर की आज्ञा के अनुकूल वर्तमान तथा पुरुषार्थी और यशस्वी होकर विद्या तथा राज्यलक्ष्मी की प्राप्ति के लिये सदैव उपाय करें। इसी से उक्त गुणवाले पुरुषों ही को लक्ष्मी से सब प्रकार का सुख मिलता है, क्योंकि ईश्वर ने पुरुषार्थी सज्जनों ही के लिये सुख रचे हैं ॥६॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कथंभूतानस्मान्कुर्वित्युपदिश्यते।

Anvay:

हे तुविद्युम्नेन्द्र परात्मँस्त्वं रभस्वतो यशस्वतोऽस्मान् तत्र पुरुषार्थे राये उत्कृष्टधनप्राप्त्यर्थे सुचोदय ॥६॥

Word-Meaning: - (अस्मान्) विदुषो धार्मिकान् मनुष्यान् (सु) शोभनार्थे क्रियायोगे च (तत्र) पूर्वोक्ते पुरुषार्थे (चोदय) प्रेरय (इन्द्र) अन्तर्यामिन्नीश्वर ! (राये) धनाय (रभस्वतः) कार्य्यारम्भं कुर्वत आलस्यरहितान् पुरुषार्थिनः (तुविद्युम्न) बहुविधं द्युम्नं विद्याद्यनन्तं धनं यस्य तत्सम्बुद्धौ। द्युम्नमिति धननामसु पठितम्। (निघं०२.१०) तुवीति बहुनामसु च। (निघं०३.१) (यशस्वतः) यशोविद्याधर्मसर्वोपकाराख्या प्रशंसा विद्यते येषां तान्। अत्र प्रशंसार्थे मतुप् ॥६॥
Connotation: - अस्यां सृष्टौ परमेश्वराज्ञायां च वर्तमानैः पुरुषार्थिभिर्यशस्विभिः सर्वैर्मनुष्यैर्विद्याराज्यश्रीप्राप्त्यर्थं सदैव प्रयत्नः कर्त्तव्यः। नैतादृशैर्विनैताः श्रियो लब्धुं शक्याः। कुतः, ईश्वरेण पुरुषार्थिभ्य एव सर्वसुखप्राप्तेर्निर्मित्तत्वात् ॥६॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या सृष्टीत सर्व माणसांनी परमेश्वराच्या आज्ञेप्रमाणे वागावे व पुरुषार्थी आणि यशस्वी बनून विद्या व राज्यलक्ष्मीच्या प्राप्तीसाठी सदैव उपाय योजावेत. यामुळे वरील गुण असणाऱ्या पुरुषांनाच लक्ष्मीपासून सुख मिळते. कारण ईश्वराने पुरुषार्थी लोकांसाठीच सर्व सुख निर्माण केलेले आहे. ॥ ६ ॥