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इ॒ममि॑न्द्र सु॒तं पि॑ब॒ ज्येष्ठ॒मम॑र्त्यं॒ मद॑म्। शु॒क्रस्य॑ त्वा॒भ्य॑क्षर॒न्धारा॑ ऋ॒तस्य॒ साद॑ने ॥

English Transliteration

imam indra sutam piba jyeṣṭham amartyam madam | śukrasya tvābhy akṣaran dhārā ṛtasya sādane ||

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Pad Path

इ॒मम्। इ॒न्द्र॒। सु॒तम्। पि॒ब॒। ज्येष्ठ॑म्। अम॑र्त्यम्। मद॑म्। शु॒क्रस्य॑। त्वा॒। अ॒भि। अ॒क्ष॒र॒न्। धाराः॑। ऋ॒तस्य॑। साद॑ने ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:84» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:5» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह क्या आज्ञा करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) शत्रुओं को विदारण करनेहारे ! जिस (त्वा) तुझे जो (धाराः) वाणी (ऋतस्य) सत्य (शुक्रस्य) पराक्रम के (सदने) स्थान में (अभ्यक्षरन्) प्राप्त करती हैं, उनको प्राप्त होके (इमम्) इस (सुतम्) अच्छे प्रकार से सिद्ध किये उत्तम ओषधियों के रस को (पिब) पी, उससे (ज्येष्ठम्) प्रशंसित (अमर्त्यम्) साधारण मनुष्य को अप्राप्त दिव्यस्वरूप (मदम्) आनन्द को प्राप्त होके शत्रुओं को जीत ॥ ४ ॥
Connotation: - कोई भी मनुष्य विद्या और अच्छे पान-भोजन के विना पराक्रम को प्राप्त होने को समर्थ नहीं और इसके विना सत्य का विज्ञान और विजय नहीं हो सकता ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स किमादिशेदित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे इन्द्र ! यं त्वा या धारा ऋतस्य शुक्रस्य सादनेऽभ्यक्षरंस्ताः प्राप्येमं सुतं सोमं पिब तेन ज्येष्ठममर्त्यं मदं प्राप्य शत्रून् विजयस्व ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (इमम्) प्रत्यक्षम् (इन्द्र) शत्रूणां विदारयितः (सुतम्) निष्पादितम् (पिब) (ज्येष्ठम्) अतिशयेन प्रशस्तम् (अमर्त्यम्) दिव्यम् (मदम्) हर्षम् (शुक्रस्य) पराक्रमस्य। (त्वा) त्वाम् (अभि) आभिमुख्ये (अक्षरन्) चालयन्ति (धाराः) वाचः। धारेति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (ऋतस्य) सत्यस्य (सदने) स्थाने ॥ ४ ॥
Connotation: - कश्चिदपि विद्यासुभोजनैर्विना वीर्यं प्राप्तुं न शक्नोति, तेन विना सत्यस्य विज्ञानं विजयश्च न जायते ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - कोणताही माणूस विद्या व उत्तम भोजन इत्यादीशिवाय पराक्रमी बनू शकत नाही व त्याशिवाय सत्य विज्ञान व विजय प्राप्त करू शकत नाही. ॥ ४ ॥