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इ॒च्छन्नश्व॑स्य॒ यच्छिरः॒ पर्व॑ते॒ष्वप॑श्रितम्। तद्वि॑दच्छर्य॒णाव॑ति ॥

English Transliteration

icchann aśvasya yac chiraḥ parvateṣv apaśritam | tad vidac charyaṇāvati ||

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Pad Path

इ॒च्छन्। अश्व॑स्य। यत्। शिरः॑। पर्व॑तेषु। अप॑ऽश्रितम्। तत्। वि॒द॒त्। श॒र्य॒णाऽव॑ति ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:84» Mantra:14 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:7» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - जैसे (इन्द्रः) सूर्य (अश्वस्य) शीघ्रगामी मेघ का (यत्) जो (शर्यणावति) आकाश में (पर्वतेषु) पहाड़ वा मेघों में (अपश्रितम्) आश्रित (शिरः) उत्तमाङ्ग के समान अवयव है, उसको छेदन करता है, वैसे शत्रु की सेना के उत्तमाङ्ग के नाश की (इच्छन्) इच्छा करता हुआ सुखों को सेनापति (विदत्) प्राप्त होवे ॥ १४ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य आकाश में रहनेहारे मेघ का छेदन कर भूमि में गिराता है, वैसे पर्वत और किलों में भी रहनेहारे दुष्ट शत्रु का हनन करके भूमि में गिरा देवे, इस प्रकार किये विना राज्य की व्यवस्था स्थिर नहीं हो सकती ॥ १४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

यथेन्द्रोऽश्वस्य यच्छर्यणावति पर्वतेष्वपश्रितं शिरोऽस्ति तज्जघान हन्ति तद्वच्छत्रुसेनाया उत्तमाङ्गं छेत्तुमिच्छन् सुखानि विदल्लभेत् ॥ १४ ॥

Word-Meaning: - (इच्छन्) (अश्वस्य) आशुगामिनः (यत्) (शिरः) उत्तमाङ्गम् (पर्वतेषु) शैलेषु मेघावयवेषु वा (अपश्रितम्) आसेवितम् (तत्) (विदत्) विद्यात् (शर्यणावति) शर्यणोऽन्तरिक्षदेशस्तस्यादूरभवे। अत्र मध्वादिभ्यश्च। (अ०। ४.२.८३) अनेन मतुप् ॥ १४ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्योऽन्तरिक्षमाश्रितं मेघं छित्त्वा भूमौ निपातयति, तथैव पर्वतदुर्गाश्रितमपि शत्रुं हत्वा भूमौ निपातयेत् नैवं विना राज्यव्यवस्था स्थिरा भवितुं शक्या ॥ १४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य आकाशातील मेघाचे छेदन करून त्याला भूमीवर पाडतो तसे पर्वतावर व किल्ल्यावर राहणाऱ्या दुष्ट शत्रूंचे हनन करून भूमीवर शयन करवावे. असे केल्याशिवाय राज्य व्यवस्था स्थिर होऊ शकत नाही. ॥ १४ ॥