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अधि॒ द्वयो॑रदधा उ॒क्थ्यं१॒॑ वचो॑ य॒तस्रु॑चा मिथु॒ना या स॑प॒र्यतः॑। असं॑यत्तो व्र॒ते ते॑ क्षेति॒ पुष्य॑ति भ॒द्रा श॒क्तिर्यज॑मानाय सुन्व॒ते ॥

English Transliteration

adhi dvayor adadhā ukthyaṁ vaco yatasrucā mithunā yā saparyataḥ | asaṁyatto vrate te kṣeti puṣyati bhadrā śaktir yajamānāya sunvate ||

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Pad Path

अधि॑। द्वयोः॑। अ॒द॒धाः॒। उ॒क्थ्य॑म्। वचः॑। य॒तऽस्रु॑चा। मि॒थु॒ना। या। स॒प॒र्यतः॑। अस॑म्ऽयत्तः। व्र॒ते। ते॒। क्षे॒ति॒। पुष्य॑ति। भ॒द्रा। श॒क्तिः। यज॑मानाय। सु॒न्व॒ते ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:83» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:4» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वे कैसे हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्य ! जैसे (या) जो (यतस्रुचा) साधनोपसाधनयुक्त पढ़ाने और उपदेश करनेहारे (मिथुना) दोनों मिलके (द्वयोः) अपना और पराया कल्याण करके जो (उक्थ्यम्) प्रशंसा के योग्य (वचः) वचन को (सपर्यतः) सेवते हैं, वैसे इसका तू (अदधाः) धारण कर। जो (असंयत्तः) अजितेन्द्रिय भी (ते) तेरे (व्रते) सत्यभाषणादि नियम पालन में (क्षेति) निवास करता है, उसमें (भद्रा) कल्याण करनेहारी (शक्तिः) सामर्थ्य (क्षेति) बसती है और वह (पुष्यति) पुष्ट होता है, तब (सुन्वते) ऐश्वर्यप्राप्ति होनेवाले (यजमानाय) सबको सुखके दाता के लिये निरन्तर सुख कैसे न बढ़े ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य परोपकारी बुद्धि से सबके शरीर और आत्मा के मध्य पुष्टि और विद्याबल को उत्पन्न कर विरोध छोड़के धर्मयुक्त व्यवहार को सेवन करके निरन्तर सब मनुष्यों को सत्यव्यवहार में प्रवृत्त करते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्ते कीदृशा इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्य ! यथा या यतस्रुचा मिथुना द्वयोर्यदुक्थ्यं वचः सपर्यतस्तथैतौ त्वमदधाः। यो संयतोऽपि ते व्रते क्षेति तस्मिन् भद्रा शक्तिरधि निवसति स पुष्यति पुष्टो भवति तर्हि तस्मै सुन्वते यजमानाय सुखं कथं न वर्द्धेत ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (अधि) उपरिभावे (द्वयोः) स्वात्मपरात्मनोः प्रियम् (अदधाः) धेहि (उक्थ्यम्) वक्तुमर्हम् (वचः) सत्यं वचनम् (यतस्रुचा) यता नियताः स्रुचः साधनानि याभ्यामुपदेशाभ्यां तौ (मिथुना) विरोधं विहाय मिलितौ (या) यौ (सपर्यतः) परिचरतः (असंयत्तः) अजितेन्द्रियोऽपि (व्रते) सत्यभाषणादिलक्षणे व्यवहारे (ते) तव (क्षेति) निवसति (पुष्यति) पुष्टो भवति (भद्रा) कल्याणकारिणी (शक्तिः) समर्थता (यजमानाय) उपदेश्याय पालकाय वा (सुन्वते) ऐश्वर्यमिच्छुकाय प्राप्ताय वा ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्याः परोपकारबुद्ध्या सर्वेषां शरीरात्मनोर्मध्ये पुष्टिविद्याबले ज्ञात्वा विरोधं त्यक्त्वा धर्म्यं व्यवहारं सेवित्वा सततं सर्वान् मनुष्यान् सत्ये व्यवहारे प्रवर्त्तयन्ति, ते मोक्षमाप्नुवन्ति नेतर इति वेद्यम् ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे परोपकारी बुद्धीने सर्वांच्या शरीर व आत्म्याची पुष्टी करतात व विद्याबल उत्पन्न करून विरोध सोडून धर्मयुक्त व्यवहार करतात आणि सदैव सर्व माणसांना सत्य व्यवहारात प्रवृत्त करतात ते मोक्ष प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥