मा॒दय॑स्व सु॒ते सचा॒ शव॑से शूर॒ राध॑से। वि॒द्मा हि त्वा॑ पुरू॒वसु॒मुप॒ कामा॑न्त्ससृ॒ज्महेऽथा॑ नोऽवि॒ता भ॑व ॥
mādayasva sute sacā śavase śūra rādhase | vidmā hi tvā purūvasum upa kāmān sasṛjmahe thā no vitā bhava ||
मा॒दय॑स्व। सु॒ते। सचा॑। शव॑से। शू॒र॒। राध॑से। वि॒द्म। हि। त्वा॒। पु॒रु॒ऽवसु॑म्। उप॑। कामा॑न्। स॒सृ॒ज्महे॑। अथ॑। नः॒। अ॒वि॒ता। भव॒ ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
फिर वह सभापति कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
पुनः स सभेशः कीदृशः स्यादित्याह ॥
हे शूर ! वयं सुते पुरुवसुं त्वामुपाश्रित्याथ कामान् ससृज्महे हि विद्म च स त्वं नोऽविता भव सचा शवसे राधसे मादयस्व ॥ ८ ॥
MATA SAVITA JOSHI
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