Go To Mantra

यामथ॑र्वा॒ मनु॑ष्पि॒ता द॒ध्यङ् धिय॒मत्न॑त। तस्मि॒न्ब्रह्मा॑णि पू॒र्वथेन्द्र॑ उ॒क्था सम॑ग्म॒तार्च॒न्ननु॑ स्व॒राज्य॑म् ॥

English Transliteration

yām atharvā manuṣ pitā dadhyaṅ dhiyam atnata | tasmin brahmāṇi pūrvathendra ukthā sam agmatārcann anu svarājyam ||

Mantra Audio
Pad Path

याम्। अथ॑र्वा। मनुः॑। पि॒ता। द॒ध्यङ्। धिय॑म्। अत्न॑त। तस्मि॑न्। ब्रह्मा॑णि। पू॒र्वऽथा॑। इन्द्रे॑। उ॒क्था। सम्। अ॒ग्म॒त॒। अर्च॑न्। अनु॑। स्व॒ऽराज्य॑म् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:80» Mantra:16 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:31» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:16


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर मनुष्य उनको प्राप्त होकर किसको प्राप्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम लोग जैसे (स्वराज्यम्) अपने राज्य की उन्नति से सबका (अन्वर्चन्) सत्कार करता हुआ (दध्यङ्) उत्तम गुणों को प्राप्त होनेवाला (अथर्वा) हिंसा आदि दोषरहित (पिता) वेद का प्रवक्ता अध्यापक वा (मनुः) विज्ञानवाला मनुष्य ये (याम्) जिस (धियम्) शुभ विद्या आदि गुण क्रिया के धारण करनेवाली बुद्धि को प्राप्त होकर जिस व्यवहार में सुखों को (अत्नत) विस्तार करता है, वैसे इसको प्राप्त होकर (तस्मिन्) उस व्यवहार में सुखों का विस्तार करो और जिस (इन्द्रे) अच्छे प्रकार सेवित परमेश्वर में (पूर्वथा) पूर्व पुरुषों के तुल्य (ब्रह्माणि) उत्तम अन्न, धन (उक्था) कहने योग्य वचन प्राप्त होते हैं (तस्मिन्) उसको सेवित कर तुम भी उनको (समग्मत) प्राप्त होओ ॥ १६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य परमेश्वर की उपासना करनेवाले विद्वानों के संग प्रीति के सदृश कर्म करके सुन्दर बुद्धि, उत्तम अन्न, धन और वेदविद्या से सुशिक्षित संभाषणों को प्राप्त होकर उनको सब मनुष्यों के लिये देना चाहिये ॥ १६ ॥ इस सूक्त में सभा आदि अध्यक्ष, सूर्य, विद्वान् और ईश्वर शब्दार्थ का वर्णन करने से पूर्वसूक्त के साथ इस सूक्त के अर्थ की संगति जाननी चाहिये ॥ इस अध्याय में इन्द्र, मरुत्, अग्नि, सभा आदि के अध्यक्ष और अपने राज्य का पालन आदि का वर्णन करने से चतुर्थ अध्याय के अर्थ के साथ पञ्चम अध्याय के अर्थ की संगति जाननी चाहिये ॥ इति श्रीमत्परिव्राजकाचार्य श्रीयुतविरजानन्दसरस्वतीस्वामी जी के शिष्य श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामी ने संस्कृत और आर्यभाषाओं से सुभूषित ऋग्वेदभाष्य में पञ्चम अध्याय पूरा किया ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्मनुष्यस्तौ प्राप्य किं प्राप्नोतीत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा स्वराज्यमन्वर्चन् दध्यङ्ङथर्वा पिता मनुर्यां धियं प्राप्य यस्मिन् सुखानि तनुते तथैतां प्राप्य यूयं सुखान्यत्नत, यस्मिन्निन्द्रे पूर्वथा ब्रह्माण्युक्था प्राप्नोति तस्मिन् सेविते सत्येतानि समग्मत सङ्गच्छध्वम् ॥ १६ ॥

Word-Meaning: - (याम्) वक्ष्यमाणम् (अथर्वा) हिंसादिदोषरहितः (मनुः) विज्ञानवान् (पिता) अनूचानोऽध्यापकः (दध्यङ्) दधति यैस्ते दधयः सद्गुणास्तानञ्चति प्रापयति वा सः। अत्र कृतो बहुलमिति करणे किस्ततोऽञ्चतेः क्विप्। (धियम्) शुभविद्यादिगुणक्रियाधारिकां बुद्धिम् (अत्नत) प्रयतध्वम् (तस्मिन्) (ब्रह्माणि) प्रकृष्टान्यन्नानि धनानि (पूर्वथा) पूर्वाणि (इन्द्रे) सम्यक् सेविते (उक्था) वक्तुं योग्यानि (सम्) सम्यक् (अग्मत) प्राप्नुत अन्यत्सर्वं पूर्ववत् (अर्चन्) (अनु) (स्वराज्यम्) ॥ १६ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैः परमेश्वरोपासकानां विद्वत्सङ्गप्रीतीनामनुकरणं कृत्वा प्रशस्तां प्रज्ञामनुत्तमान्यन्नानि धनानि वा वेदविद्यासुशिक्षितानि भाषणानि प्राप्यैतानि सर्वेभ्यो देयानि ॥ १६ ॥ अस्मिन् सूक्ते सभाध्यक्षसूर्यविद्वदीश्वरशब्दार्थवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥ अस्मिन्नध्याय इन्द्रमरुदग्निसभाद्यध्यक्षस्वराज्यपालनाद्युक्तत्वाच्चतुर्थाध्यायार्थेन सहास्य पञ्चमाध्यायार्थस्य सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥ इति श्रीमत्परिव्राजकाचार्याणां श्रीयुतविरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचिते संस्कृतार्यभाषाभ्यां सुविभूषिते ऋग्वेदभाष्ये पञ्चमोऽध्यायः समाप्तिमगमत् ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी परमेश्वराची उपासना करणाऱ्या विद्वानांचा संग करून, प्रेमाने वागून, चांगली बुद्धी, उत्तम अन्न, धन, वेदविद्येने सुसंस्कृत झालेल्या वाणीद्वारे सर्वांना ते प्रदान करावे. ॥ १६ ॥