Go To Mantra

इ॒मे चि॒त्तव॑ म॒न्यवे॒ वेपे॑ते भि॒यसा॑ म॒ही। यदि॑न्द्र वज्रि॒न्नोज॑सा वृ॒त्रं म॒रुत्वाँ॒ अव॑धी॒रर्च॒न्ननु॑ स्व॒राज्य॑म् ॥

English Transliteration

ime cit tava manyave vepete bhiyasā mahī | yad indra vajrinn ojasā vṛtram marutvām̐ avadhīr arcann anu svarājyam ||

Mantra Audio
Pad Path

इ॒मे। चि॒त्। तव॑। म॒न्यवे॑। वेपे॑ते॒ इति॑। भि॒यसा॑। म॒ही। यत्। इ॒न्द्र॒। व॒ज्रि॒न्। ओज॑सा। वृ॒त्रम्। म॒रुत्वान्। अव॑धीः। अर्च॑न्। अनु॑। स्व॒ऽराज्य॑म् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:80» Mantra:11 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:31» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:11


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे (वज्रिन्) शस्त्रविद्या को ठीक-ठीक जाननेवाले (इन्द्र) सभाध्यक्ष राजन् ! (यत्) जिस (तव) आपके (ओजसा) सेना के बल से जैसे सूर्य के आकर्षण और ताड़न से (इमे) ये (मही) लोक (वेपेते) कँपते हैं, उनके समान जो आप (भियसा) भयबल से (मन्यवे) क्रोध की शान्ति के लिये शत्रु लोग (अनु) अनुकूल होके कम्पते रहते हैं जैसे (मरुत्वान्) बहुत वायु से युक्त सूर्य (वृत्रम्) मेघ को मारता है, वैसे ही (स्वराज्यम्) अपने राज्य का (अर्चन्) सत्कार करता हुआ (चित्) और शत्रु को (अवधीः) मारा कर ॥ ११ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सभाप्रबन्ध के होने से सुखपूर्वक प्रजा के मनुष्य अच्छे मार्ग में चलते-चलाते हैं, वैसे ही सूर्य के आकर्षण से सब भूगोल इधर-उधर चलते-फिरते हैं। जैसे सूर्य मेघ को वर्षा के सब प्रजा का पालन करता है, वैसे सभा और सभापति आदि को भी चाहिये कि शत्रु और अन्याय का नाश करके विद्या और न्याय के प्रचार से प्रजा का पालन करें ॥ ११ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे वज्रिन्निन्द्र सभाद्यध्यक्ष ! यद्यस्य तवौजसा यथा सूर्यस्याकर्षणेन ताडनेन चेमे मही वेपेते तत्तुल्यस्य तव भियसा मन्यवे बलेन शत्रवोऽनुकम्पन्ते यथा मरुत्वानिन्द्रो वृत्रं हन्ति तथा स्वराज्यमन्वर्चन्नरांश्चिदवधीः ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (इमे) वक्ष्यमाणे (चित्) अपि (तव) (मन्यवे) न्यायव्यवस्थापालनहेतवे (वेपेते) चलतः (भियसा) भयेन (मही) महत्यौ द्यावापृथिव्यौ (यत्) यस्य (इन्द्र) सभाद्यध्यक्षराजन् (वज्रिन्) सुशिक्षितशस्त्रविद्यायुक्त (ओजसा) सेनाबलेन (वृत्रम्) मेघमिवारीन् (मरुत्वान्) प्रशस्तवायुमान् (अवधीः) हिन्धि (अर्चन्) (अनु) (स्वराज्यम्) ॥ ११ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सभाप्रबन्धेन प्रजाः सुखेन सन्मार्गेण गच्छन्त्यागच्छन्ति तथैव सूर्यस्याकर्षणेन सर्वे भूगोला गच्छन्त्यागच्छन्ति यथा सूर्यो मेघं हत्वा जलेन प्रजाः पालयति, तथैव सभासभाद्यध्यक्षौ शत्र्वन्यायौ हत्वा विद्यान्यायप्रचारेण प्रजाः पालयेताम् ॥ ११ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सभेची व्यवस्था किंवा प्रबंध असल्यास माणसे सुखपूर्वक सन्मार्गाने चालतात व चालवितात. तसेच सूर्याच्या आकर्षणाने सर्व भूगोल इकडेतिकडे भ्रमण करतात. जसा सूर्य मेघाद्वारे वृष्टी करून सर्व प्रजेचे पालन करतो तसे सभा व सभापती इत्यादींनीही शत्रू व अन्यायाचा नाश करून विद्या व न्यायाचा प्रचार करून प्रजेचे पालन करावे. ॥ ११ ॥