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म॒हाँ इन्द्रः॑ प॒रश्च॒ नु म॑हि॒त्वम॑स्तु व॒ज्रिणे॑। द्यौर्न प्र॑थि॒ना शवः॑॥

English Transliteration

mahām̐ indraḥ paraś ca nu mahitvam astu vajriṇe | dyaur na prathinā śavaḥ ||

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Pad Path

म॒हान्। इन्द्रः॑। प॒रः। च॒। नु। म॒हि॒ऽत्वम्। अ॒स्तु॒। व॒ज्रिणे॑। द्यौः। न। प्र॒थि॒ना। शवः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:8» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:3» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

उक्त कार्य्यसहाय करनेहारा जगदीश्वर किस प्रकार का है, सो अगले मन्त्र में प्रकाश किया है-

Word-Meaning: - (न) जैसे मूर्त्तिमान् संसार को प्रकाशयुक्त करने के लिये (द्यौः) सूर्य्यप्रकाश (प्रथिना) विस्तार से प्राप्त होता है, वैसे ही जो (महान्) सब प्रकार से अनन्तगुण अत्युत्तम स्वभाव अतुल सामर्थ्ययुक्त और (परः) अत्यन्त श्रेष्ठ (इन्द्रः) सब जगत् की रक्षा करनेवाला परमेश्वर है, और (वज्रिणे) न्याय की रीति से दण्ड देनेवाले परमेश्वर (नु) जो कि अपने सहायरूपी हेतु से हमको विजय देता है, उसी की यह (महित्वम्) महिमा (च) तथा बल है॥५॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। धार्मिक युद्ध करनेवाले मनुष्यों को उचित है कि जो शूरवीर युद्ध में अति धीर मनुष्यों के साथ होकर दुष्ट शत्रुओं पर अपना विजय हुआ है, उसका धन्यवाद अनन्त शक्तिमान् जगदीश्वर को देना चाहिये कि जिससे निरभिमान होकर मनुष्यों के राज्य की सदैव बढ़ती होती रहे॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते।

Anvay:

यो मूर्त्तिमतः संसारस्य द्यौः सूर्य्यः प्रथिना न सुविस्तृतेन स्वप्रकाशेनेव महान् पर इन्द्रः परमेश्वरोऽस्ति, तस्मै वज्रिणे इन्द्रायेश्वराय न्वस्मत्कृतस्य विजयस्य महित्वं शवश्चास्तु॥५॥

Word-Meaning: - (महान्) सर्वथाऽनन्तगुणस्वभावसामर्थ्येन युक्तः (इन्द्रः) सर्वजगद्राजः (परः) अत्यन्तोत्कृष्टः (च) पुनरर्थे (नु) हेत्वपदेशे। (निरु०१.४) (महित्वम्) मह्यते पूज्यते सर्वैर्जनैरिति महिस्तस्य भावः। अत्रौणादिकः सर्वधातुभ्य इन्नितीन् प्रत्ययः। (अस्तु) भवतु (वज्रिणे) वज्रो न्यायाख्यो दण्डोऽस्यास्तीति तस्मै। वज्रो वै दण्डः। (श०ब्रा०३.१.५.३२) (द्यौः) विशालः सूर्य्यप्रकाशः (न) उपमार्थे। उपसृष्टादुपचारस्तस्य येनोपमिमीते। (निरु०१.४) यत्र कारकात्पूर्वं नकारस्य प्रयोगस्तत्र प्रतिषेधार्थीयः, यत्र च परस्तत्रोपमार्थीयः। (प्रथिना) पृथोर्भावस्तेन। पृथुशब्दादिमनिच्। छान्दसो वर्णलापो वेति मकारलोपः। (शवः) बलम्। शव इति बलनामसु पठितम्। (निघं०२.९)॥५॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारोऽस्ति। धार्मिकैर्युद्धशीलैः शूरैर्योद्धृभिर्मनुष्यैः स्वनिष्पादितस्य दुष्टशत्रुविजयस्य धन्यवादा अनन्तशक्तिमते जगदीश्वरायैव देयाः। यतो मनुष्याणां निरभिमानतया राज्योन्नतिः सदैव वर्धेतेति॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. धार्मिक युद्ध करणाऱ्या माणसांनी युद्धात शूरवीर, अत्यंत धैर्यवान माणसांसह दुष्ट शत्रूंवर विजय मिळविला तर त्याबद्दल अनन्त शक्तिमान जगदीश्वराचे धन्यवाद मानले पाहिजेत. कारण त्यामुळे निरभिमानी बनून माणसांचे राज्य सदैव वाढीस लागते. ॥ ५ ॥