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व॒यं शूरे॑भि॒रस्तृ॑भि॒रिन्द्र॒ त्वया॑ यु॒जा व॒यम्। सा॒स॒ह्याम॑ पृतन्य॒तः॥

English Transliteration

vayaṁ śūrebhir astṛbhir indra tvayā yujā vayam | sāsahyāma pṛtanyataḥ ||

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Pad Path

व॒यम्। शूरे॑भिः। अस्तृ॑ऽभिः। इन्द्र॑। त्वया॑। यु॒जा। व॒यम्। सा॒स॒ह्याम॑ पृ॒त॒न्य॒तः॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:8» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:3» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

किस-किस के सहाय से उक्त सुख सिद्ध होता है, सो अगले मन्त्र में प्रकाश किया है-

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) युद्ध में उत्साह के देनेवाले परमेश्वर ! (त्वया) आपको अन्तर्यामी इष्टदेव मानकर आपकी कृपा से धर्मयुक्त व्यवहारों में अपने सामर्थ्य के (युजा) योग करानेवाले के योग से (वयम्) युद्ध के करनेवाले हम लोग (अस्तृभिः) सब शस्त्र-अस्त्र के चलाने में चतुर (शूरेभिः) उत्तमों में उत्तम शूरवीरों के साथ होकर (पृतन्यतः) सेना आदि बल से युक्त होकर लड़नेवाले शत्रुओं को (सासह्याम) वार-वार सहें अर्थात् उनको निर्बल करें, इस प्रकार शत्रुओं को जीतकर न्याय के साथ चक्रवर्त्ति राज्य का पालन करें॥४॥
Connotation: - शूरता दो प्रकार की होती है, एक तो शरीर की पुष्टि और दूसरी विद्या तथा धर्म से संयुक्त आत्मा की पुष्टि। इन दोनों से परमेश्वर की रचना के कर्मों को जानकर न्याय, धीरजपन, उत्तम स्वभाव और उद्योग आदि से उत्तम-उत्तम गुणों से युक्त होकर सभाप्रबन्ध के साथ राज्य का पालन और दुष्ट शत्रुओं का निरोध अर्थात् उनको सदा कायर करना चाहिये॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

कस्य कस्य सहायेनैतत् सिध्यतीत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे इन्द्र ! युजा त्वया वयमस्तृभिः शूरेभिर्योद्धृभिः सह पृतन्यतः शत्रून् सासह्यामैवंप्रकारेण चक्रवर्त्तिराजानो भूत्वा नित्यं प्रजाः पालयेम॥४॥

Word-Meaning: - (वयम्) सभाध्यक्षाः सेनापतिवराः (शूरेभिः) सर्वोत्कृष्टशूरवीरैः। अत्र बहुलं छन्दसीति भिस ऐसादेशो न। (अस्तृभिः) सर्वशस्त्रास्त्रप्रक्षेपणदक्षैः सह (इन्द्र) युद्धोत्साहप्रदेश्वर (त्वया) अन्तर्यामिणेष्टेन (युजा) कृपया धार्मिकेषु स्वसामर्थ्यसंयोजकेन (वयम्) योद्धारः (सासह्याम) पुनः पुनः सहेमहि। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदं लिङर्थे लोट् च। (पृतन्यतः) आत्मनः पृतनामिच्छतः शत्रून् ससेनान्। पृतनाशब्दात् क्यच्। कव्यध्वरपृतनस्यर्चिलोपः। (अष्टा०७.४.३९) अनेन ऋचि ऋग्वेद एवाकारलोपः॥४॥
Connotation: - शौर्य्यं द्विविधं पुष्टिजन्यं शरीरस्थं विद्याधर्मजन्यमात्मस्थं च, एताभ्यां सह वर्त्तमानैर्मनुष्यैः परमेश्वरस्य सृष्टिरचनाक्रमान् ज्ञात्वा न्यायधैर्य्यसौजन्योद्योगादीन् सद्गुणान् समाश्रित्य सभाप्रबन्धेन राज्यपालनं दुष्टशत्रुनिरोधश्च सदा कर्त्तव्य इति॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - शौर्य हे दोन प्रकारचे असते. एक शरीराची पुष्टी व दुसरी विद्या व धर्माने युक्त होऊन आत्म्याची पुष्टी. या दोन्हींद्वारे परमेश्वराचा सृष्टी उत्पत्तिक्रम जाणून न्याय, धैर्य, उत्तम स्वभाव व उद्योग इत्यादी उत्तम उत्तम गुणांनी युक्त व्हावे व सभेचा प्रबंध करून राज्याचे पालन व दुष्ट शत्रूंचे दमन अर्थात त्यांना सदैव भयभीत करावे. ॥ ४ ॥