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इन्द्र॒ त्वोता॑स॒ आ व॒यं वज्रं॑ घ॒ना द॑दीमहि। जये॑म॒ सं यु॒धि स्पृधः॑॥

English Transliteration

indra tvotāsa ā vayaṁ vajraṁ ghanā dadīmahi | jayema saṁ yudhi spṛdhaḥ ||

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Pad Path

इन्द्र॑। त्वाऽऊ॑तासः। आ। व॒यम्। वज्र॑म्। घ॒ना। द॒दी॒म॒हि॒। जये॑म। सम्। यु॒धि। स्पृधः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:8» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:15» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:3» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्य किसको धारण करने से शत्रुओं को जीत सकते हैं, सो अगले मन्त्र में प्रकाश किया है-

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) अनन्तबलवान् ईश्वर ! (त्वोतासः) आपके सकाश से रक्षा आदि और बल को प्राप्त हुए (वयम्) हम लोग धार्मिक और शूरवीर होकर अपने विजय के लिये (वज्रम्) शत्रुओं के बल का नाश करने का हेतु आग्नेयास्त्रादि अस्त्र और (घना) श्रेष्ठ शस्त्रों का समूह, जिनको कि भाषा में तोप बन्दूक तलवार और धनुष् बाण आदि करके प्रसिद्ध कहते हैं, जो युद्ध की सिद्धि में हेतु हैं, उनको (आददीमहि) ग्रहण करते हैं। जिस प्रकार हम लोग आपके बल का आश्रय और सेना की पूर्ण सामग्री करके (स्पृधः) ईर्षा करनेवाले शत्रुओं को (युधि) संग्राम में (जयेम) जीतें॥३॥
Connotation: - मनुष्यों को उचित है कि धर्म और ईश्वर के आश्रय से शरीर की पुष्टि और विद्या करके आत्मा का बल तथा युद्ध की पूर्ण सामग्री परस्पर अविरोध और उत्साह आदि श्रेष्ठ गुणों का ग्रहण करके दुष्ट शत्रुओं के पराजय करने से अपने और सब प्राणियों के लिये सुख सदा बढ़ाते रहें॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्याः किं धृत्वा शत्रून् जयन्तीत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे इन्द्र ! त्वोतासो वयं स्वविजयार्थं घना आददीमहि, यतो वयं युधि स्पृधो जयेम॥३॥

Word-Meaning: - (इन्द्र) अनन्तबलेश्वर ! (त्वोतासः) त्वया बलं प्रापिताः (आ) क्रियार्थे (वयम्) बलवन्तो धार्मिका शूराः (वज्रम्) शत्रूणां बलच्छेदकमाग्नेयादिशस्त्रास्त्रसमूहम् (घना) शतघ्नीभुसुण्ड्यसिचापबाणादीनि दृढानि युद्धसाधनानि। शेश्छन्दसि बहुलमिति लुक्। (ददीमहि) गृह्णीमः। अत्र लडर्थे लिङ्। (जयेम) (सं) क्रियार्थे (युधि) संग्रामे (स्पृधः) स्पर्धमानान् शत्रून्। ‘स्पर्ध सङ्घर्षे’ इत्यस्य क्विबन्तस्य रूपम्। बहुलं छन्दसि। (अष्टा०६.१.३४) अनेन सम्प्रसारणमल्लोपश्च॥३॥
Connotation: - मनुष्यैर्धर्मेश्वरावाश्रित्य शरीरपुष्टिं विद्ययात्मबलं पूर्णां युद्धसामग्रीं परस्परमविरोधमुत्साहमित्यादि सद्गुणान् गृहीत्वा सदैव दुष्टानां शत्रूणां पराजयकरणेन सुखयितव्यम्॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी धर्म व ईश्वराचा आश्रय घ्यावा. शरीराची पुष्टी करून विद्येने आत्म्याचे बल वाढवावे. युद्धाचे पूर्ण साहित्य, परस्पर अविरोध व उत्साह इत्यादी श्रेष्ठ गुणांचे ग्रहण करून दुष्ट शत्रूंचा पराजय करावा व आपले आणि प्राण्यांचे सुख सदैव वाढवीत जावे. ॥ ३ ॥