नि येन॑ मुष्टिह॒त्यया॒ नि वृ॒त्रा रु॒णधा॑महै। त्वोता॑सो॒ न्यर्व॑ता॥
ni yena muṣṭihatyayā ni vṛtrā ruṇadhāmahai | tvotāso ny arvatā ||
नि। येन॑। मु॒ष्टि॒ऽह॒त्यया॑। नि। वृ॒त्रा। रु॒णधा॑महै। त्वाऽऊ॑तासः। नि। अर्व॑ता॥
SWAMI DAYANAND SARSWATI
कैसे धन से परमसुख होता है, सो अगले मन्त्र में प्रकाश किया है-
SWAMI DAYANAND SARSWATI
कीदृशेन धनेनेत्युपदिश्यते।
हे जगदीश्वर ! त्वं त्वोतासस्त्वया रक्षिता सन्तो वयं येन धनेन मुष्टिहत्ययाऽर्वता निवृत्रा निश्चितान् शत्रून् निरुणधामहै, तेषां सर्वदा निरोधं करवामहै, तदस्मभ्यं देहि॥२॥
MATA SAVITA JOSHI
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