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अवो॑चाम॒ रहू॑गणा अ॒ग्नये॒ मधु॑म॒द्वचः॑। द्यु॒म्नैर॒भि प्र णो॑नुमः ॥

English Transliteration

avocāma rahūgaṇā agnaye madhumad vacaḥ | dyumnair abhi pra ṇonumaḥ ||

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Pad Path

अवो॑चाम। रहू॑गणाः। अ॒ग्नये॑। मधु॑ऽमत्। वचः॑। द्यु॒म्नैः। अ॒भि। प्र। नो॒नु॒मः॒ ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:78» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:5» Varga:26» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:13» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह विद्वान् कैसा हो, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे विद्वान् लोगो ! (रहूगणाः) धर्मयुक्त पापियों के समूह के त्याग करनेवाले तुम जैसे (द्युम्नैः) उत्तम कीर्त्ति के साथ वर्त्तमान (अग्नये) विद्वान् के लिये (मधुमत्) मिष्ट (वचः) वचन बोलते हो, वैसे हम भी (अवोचाम) बोला करें। जैसे हम लोग उसको (अभि प्र णोनुमः) नमस्कारादि से प्रसन्न करते हैं, वैसे तुम भी किया करो ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को अत्यावश्यक है कि धर्मयुक्त कीर्त्तिवाले मनुष्यों ही की प्रशंसा करें, अन्य की नहीं ॥ ५ ॥ इस सूक्त में ईश्वर और विद्वानों के गुणकथन से इस सूक्तार्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे विद्वांसो ! रहूगणा भवन्तो यथा द्युम्नैरग्नये मधुमद्वचो ब्रुवते तथा वयमवोचाम। यथा वयं तमभिप्रणोनुमस्तथा यूयमपि नमत ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (अवोचाम) उच्याम (रहूगणाः) रहवोऽधर्मत्यागिनो गणाः सेविता यैस्ते (अग्नये) विदुषे सभाध्यक्षाय (मधुमत्) मधुरसवत् (वचः) वचनम् (द्युम्नैः) उत्तमैर्यशोभिः (अभि) (प्र) (नोनुमः) भृशन्नमस्कुर्म्मः ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्धर्म्यकीर्त्तिमतामेव प्रशंसा कार्य्या नेतरेषाम् ॥ ५ ॥ अत्रेश्वरविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्ताऽर्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी धर्मयुक्त कीर्ती असणाऱ्या माणसांचीच प्रशंसा करावी, इतरांची नव्हे. ॥ ५ ॥